बलरामपुर: जिले के तुलसीपुर स्थित देवीपाटन शक्तिपीठ से तकरीबन 500 मीटर दूर नव देवी का मंदिर है. इस मंदिर का अपना पौराणिक महत्व के साथ ही पुराना इतिहास है. इस मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1244 में किया गया था, जिसे नेपाल नरेश ने करवाया था. मान्यता है कि इस मंदिर में स्थित मां दुर्गा की पिंडी से सालों साल से पानी खुद-ब-खुद निकलता आ रहा है.
क्या है इतिहास
दुनिया भर में स्थापित मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में शुमार देवीपाटन मंदिर तुलसीपुर के उत्तर दिशा में तकरीबन 500 मीटर दूरी पर हजारों साल पुराना एक दुर्गा मंदिर स्थित है, जिसे नव देवी मंदिर के नाम से जाना जाता हैं. शारदीय नवरात्रि के अलावा नवरात्रों और अन्य महीनों की विशेष तिथियों में इस पर श्रद्धालुओं की न केवल भीड़ लगी रहती है. बल्कि यहां पर तरह-तरह के आयोजन और पूजन भी किए जाते हैं.
1244 में हुआ था मंदिर का जीर्णोद्धार
इस बारे में बात करते हुए महंत गोपाल नाथ बताते हैं कि यह मंदिर कितना पुराना है. इसकी वास्तविक जानकारी शायद किसी को नहीं है. उनके अनुसार इस मंदिर का जीर्णोद्धार साल 1244 में किया गया था, जिसे नेपाल नरेश ने करवाया था. इसका उल्लेख दरवाजे पर भी अंकित है. मंदिर के विषय में लोग एक प्रसिद्ध कहानी सुनाते हैं. वह बताते हैं कि राजा सुहेलदेव के भाई राजा बेन को कुष्ठ रोग हो गया था, इसलिए तमाम लोगों से मंत्रणा के बाद उनके भाई ने उन्हें राज्य से बाहर निकाल दिया. राज्य से बाहर निकाले जाने के बाद राजा बेन वीराने जंगल में चले आए और यहीं पर नव दुर्गा की प्रतिमा पर साधना करने लगे. कई वर्षों तक घोर तपस्या करने के बाद माता नव दुर्गा उन पर प्रसन्न हुईं और उनका कुष्ठ रोग माता के वरदान से ठीक हो गया. इस साथ ही माता ने उन्हें एक और वरदान देते हुए दूसरे राज्य के रूप में देवीपाटन किला भेंट किया था.
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