बलरामपुर: कोरोना महामारी से बचाने के लिए सरकार ने लॉकडाउन लगाया है. वहीं लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन भी हो रहा है. मुंबई में काम करने वाले तीन युवक इस लॉकडाउन में पैदल और साइकिल से सफर तय करके अपने जिला बलरामपुर पहुंचे.
बलरामपुर में मुंबई से कुछ युवक पहुंचे पैदल पार किया खड़ा पहाड़
राजअली, अमित कुमार और उसके साथी कौशल के साथ तकरीबन 35 लोगों ने अपने घर बस्ती जिले के रूधौली थाना पहुंचने के लिए मुंबई से सफर की शुरुआत की. इन्होंने तकरीबन 1600 किलोमीटर के सफर की शुरुआत में 350 किलोमीटर का सफर पैदल तय किया और मध्यप्रदेश की सीमा तक पहुंचे. ये सभी लोग बताते हैं कि महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के बीच की सीमा में काफी सख्ती थी, पुलिस रास्ते से जाने नहीं दे रही थी, इसलिए इन लोगों ने एमपी में बिलकुल खड़ा पहाड़ चढ़कर उस इलाके को पार किया. इस दौरान कुछ लोगों को चोट भी लग गयी, कुछ घायल हो गए. फिर आगे जब थिंडोवली में पहुंचे तब तक पैर में छाले पड़ चुके थे और ये लोग पैदल चलने के काबिल नहीं रह गए थे.
मां ने जेवर बेचकर दिया पैसा
इतना पैदल चलने के बाद इन लोगों ने घर वालों से कुछ पैसे की मांग की, जिससे साइकिल खरीदकर वह वापस अपने घर आ सकें. राज अली और अमित कुमार बताते हैं कि घर में पैसा नहीं था, तो मां ने अपने जेवर बेचे और पैसा एकाउंट में डाला. जिसके बाद इन लोगों ने मालेगांव में साईकिल खरीदी और चलना शुरू किया.
कौशल चौहान ने बताया कि उनके पास पैसा नहीं था तो अपने एक साथी से मिलकर साइकिल खरीदी. कभी वह तो कभी कौशल साइकिल चलाते. ये लोग बताते हैं कि रास्ते में बहुत मुश्किलें आईं, लेकिन लक्ष्य घर पहुंचना था क्योंकि अगर अपने ठेकेदार या मालिक के सहारे होते तो शायद इस महामारी में जिंदा भी न बचते.
घर पर हैं बहुत सी समस्याएं
इन लोगों ने बताया कि जब पैसा खत्म होने को हुआ तो घर से सहायता लेने की सोची, लेकिन घर पर भी गरीबी है और हम ही लोग कमाने वाले हैं. तो ऐसी तमाम चीजों को देखने के बाद मुंबई से निकलना ही सही समझा. इन लोगों ने बताया कि अब वह घर पहुंच जाएंगे और वहां के क्वारंटाइन सेंटर पर क्वारंटाइन हो जाएंगे. इन लोगों के घर पर भी समस्याएं कम नहीं हैं, गरीबी है इसलिए काम करना जरूरी है.
इन युवकों ने बताया कि वह पूरे परिवार को कमाकर खिलाते थे, उनके घर पर राशन कार्ड तक नहीं है, जिससे राशन मिल सके. मुंबई दोबारा वापस जाने के सवाल पर वह कहते हैं कि घर पर रहकर कुछ भी कर लेंगे, लेकिन अगले दो साल तो कम से कम परदेश की तरफ देखेंगे भी नहीं.