बलरामपुर: जिले के तकरीबन 50% किसानों के पास सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं है. किसान या तो बरसात के पानी पर निर्भर होते हैं या उन्हें सिंचाई के लिए खुद की कोई व्यवस्था करनी पड़ती है. ऐसा नहीं है कि सरकारी तंत्र ने कोई प्रयास नहीं किए.
- इंदिरा गांधी सरकार में तकरीबन 40 साल पहले सरयू नहर परियोजना की शुरुआत की गई थी.
- तकरीबन एक दर्जन बार इस परियोजना को शुरू और बंद किया गया.
- साल 2012 में केंद्र की मनमोहन सरकार ने सरयू नहर परियोजना को राष्ट्रीय नहर परियोजना का दर्जा दिया.
- इसके बाद इस नहर का 90% खर्च केंद्र सरकार उठा रही है जबकि 10% खर्च राज्य सरकार उठा रही है.
- फिर भी इस काम में बहुत तेजी से प्रगति नहीं आ सकी.
- नहरों में पानी ना होने से जिले के तकरीबन डेढ़ लाख हेक्टेयर खेत प्रभावित हैं.
- किसान केवल एक ही फसल अपने खेतों से ले पाते हैं.
सादुल्लाह नगर के सराय खास के रहने वाले किसान विजयपाल वर्मा बताते हैं कि उनके पास 2 एकड़ खेत है. सिंचाई की पुख्ता व्यवस्था ना होने के कारण और नहरों में पानी ना आने के कारण वह अपनी खेती से बहुत ज्यादा लाभ नहीं कमा पाते हैं. सिंचाई के लिए उन्होंने पंपिंग सेट लगवा रखा है.
इसी गांव के शमीम अहमद बताते हैं कि हमारे पास तकरीबन 4 एकड़ खेत है. वह भी नहर से सटा हुआ. लेकिन सालों से नहर में पानी नहीं आ सका है. हमने इस नहर में पानी आते अपनी पूरी जिंदगी में कभी नहीं देखा. हमारी सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह से निजी नलकूपों या पंपिंग सेट पर निर्भर रहती है. इस कारण हम लोगों की लागत काफी हो जाती है, जबकि मुनाफा काफी घट जाता है.