बलरामपुर:जिले के तुलसीपुर के पक्का घाट (रामलीला तालाब) पर सैकड़ों वर्षों से संचालित रामलीला आज भी भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के त्याग, बलिदान और संघर्ष को लोगों के सामने जीवंत कर रहा है. अवधी भाषा में रामलीला का मंचन स्थानीय कलाकारों के प्रतिभा से संचालित हो रहा है. इस रामलीला का मकसद न केवल लोगों और आज की पीढ़ी को राम चरित्र के बारे में अवगत करना है. बल्कि अवधी में मंचन के जरिए धीरे-धीरे विलुप्त होती इस भाषा का विकास करना भी है.
क्या है इतिहास-
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस रामलीला की शुरुआत कब हुई, इसका तो पता नहीं लेकिन पुराने अभिलेखों के अनुसार पता चलता है कि यह रामलीला ब्रिटिश काल से ही जारी है. इसे करीब 100 साल बीतने को हैं. लोग बताते हैं कि इस रामलीला का आयोजन यहां पर तब से हो रहा है जब यहां जंगल हुआ करता था. देवीपाटन शक्तिपीठ के निकट होने के कारण यहां पर आसपास के गांवों और इलाकों से काफी भीड़ आती थी, जो रात भर रामलीला के मंचन का आनंद लेती थी. बुजुर्ग यह भी बताते हैं कि इस रामलीला का आयोजन अवधी भाषा में कराने का केवल एक ही लक्ष्य है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों में अवधी भाषा के प्रति सम्मान पैदा किया जा सके.
क्या है इस रामलीला का ध्येय-
ब्रिटिश काल से अवधी भाषा में चल रही इस रामलीला में राजा दशरथ का दरबार, श्रीराम जन्म, गुरु वशिष्ठ का आश्रम, धनुष यज्ञ, राम का राजतिलक, राम वनवास, राम केवट संवाद सहित प्रभु श्रीराम के जीवन से जुड़ी तमाम बातों और कहानियों को यहां के स्थानीय कलाकार अपनी प्रतिभा से लोगों के सामने मंचन करते हैं. इस रामलीला के जरिए कलाकारों का मकसद है कि वह भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को आने वाली पीढ़ी में संचारित कर सकें.