बलरामपुर:तकरीबन 3500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बसे इस जिले में 24 लाख लोगों की आबादी निवास करती है. जिले में जरवा नाम का एक इलाका नेपाल से सटा हुआ है. यहां नेपाल के पहाड़ी इलाके की दूरी महज चार किलोमीटर रह जाती है. यहां पर स्थित जरवा रेलवे स्टेशन से 2005 से पहले तमाम मालगाड़ियां और सवारी गाड़ियां गोरखपुर और गोंडा जाया करती थी. यहां पर पत्थर और बालू खनन का बड़ा कारोबार होता था. जरवा रेलवे स्टेशन और पत्थर-बालू का कारोबार बंद होने के बाद यहां के लोगों की रोजगार की उम्मीदों पर ताला लग चुका है.
जरवा इलाके के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित
- बलरामपुर जिले के तुलसीपुर-कोयलाबास सड़क मार्ग पर 'जरवा' नाम का एक बड़ा बाजार पड़ता है.
- थारू जनजाति और मुस्लिम समुदाय की बहुलता लिए इस इलाके में पहले रौनक हुआ करती थी.
- जब से जरवा रेलवे स्टेशन और पत्थर का कारोबार बंद हुआ, तब से यहां पर सन्नाटा पसरा रहता है.
- सैकड़ों एकड़ में फैले इस रेलवे स्टेशन पर अब पेड़ उग चुके हैं.
- यहां पर अब न तो ट्रेन आती है, न ही किसी तरह का कोई कारोबार होता है.
- जरवा स्टेशन के संचालन की निशानियां आज भी स्टेशन पर उसी तरह कायम है.
- साल 2005 से पहले गैंसड़ी से जरवा के लिए बिछी रेल लाइन पर प्रतिदिन एक ट्रेन आया करती थी.
- कुछ देर यहां पर रुककर दोबारा गोंडा या गोरखपुर के लिए वापस हो जाया करती थी.
- साल 1995 के बाद सिस्टम की ऐसी नजर इस इलाके पर लगी कि यहां का बालू और पत्थर का कारोबार ठप हो गया.
- 25 सालों से यहां पर बालू और पत्थर का लाइसेंस निरस्त ही पड़ा है.
- जिसके बाद लगातार घाटा झेल रहे रेल मंत्रालय ने अंततः इस लूप लाइन को बंद करने का निर्णय लिया.
- रोजगार खत्म होने के बाद यहां के बाशिंदों के पास मजदूरी के अलावा रोजगार का कोई दूसरा संसाधन नहीं है.
जब से यहां पर रेल यातायात बंद हुआ है. तब से हमें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. रोजगार के संसाधन पूरी तरह से ठप हो गए हैं. यहां के युवा बाहर जाकर नौकरी करते हैं या यहीं पर रहकर रोज दो सौ की दिहाड़ी पर काम करते हैं.
-रज्जाक अहमद, स्थानीय निवासी