बलरामपुर: बदहाल और जर्जर प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों की तस्वीर बदलने के लिए प्रदेश शासन द्वारा 'ऑपरेशन कायाकल्प' चलाया गया. इसके तहत परिषदीय स्कूलों की सूरत को बदलने की योजना ग्राम प्रधानों, अभिभावक, विद्यालय समिति के हाथों में दी गई. इस योजना के तहत शुरू में तो जिले में खूब काम हुआ, लेकिन अब प्रदेश सरकार की यह योजना खटाई में पड़ती नजर आ रही है.
बलरामपुर में ऑपरेशन कायाकल्प हुआ फेल. शासन के फरमान को ठेंगा दिखाते अधिकारी-
14 वें राज्य वित्त में भरपूर बजट होने के बाद भी प्रधान, मुख्य विकास अधिकारी, जिलाधिकारी के साथ-साथ शासन के फरमान को भी ठेंगा दिखा रहे हैं. जानकारी के अनुसार जिले में अब तक तकरीबन 800 परिषदीय विद्यालयों की रंगाई, पुताई, शौचालय, पेयजल व्यवस्था को सुदृढ़ कर के बच्चों के लिए बेहतर माहौल तैयार करने का काम किया गया. इन विद्यालयों में 'बाला' के जरिए बच्चों को दीवार पर ही सीखने-सिखाने की भी व्यवस्था की गई है.
बदहाली पर आंसू बहा रहे विद्यालय-
इसके अतिरिक्त तकरीबन 1400 से अधिक विद्यालय आज भी अपनी बदहाली का रोना रो रहे हैं. इन विद्यालयों में से अधिकांश स्कूलों के भवन तो बिल्कुल जर्जर हो चुके हैं. इनमें से कुछ विद्यालयों की हालत इतनी खराब है कि यहां पर बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर है, लेकिन सरकार द्वारा नियुक्त किए गए अधिकारियों के पास इतनी फुर्सत नहीं कि वह विद्यालयों की उचित जांच करवाकर 'कायाकल्प योजना' के तहत उन्हें रिनोवेट करने का काम शुरू करवा दें.
आपको बताते चलें कि जिले में कुल 2235 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय है, जिनमें तकरीबन सवा दो लाख बच्चे अध्ययनरत हैं. इन्हें पढ़ाने के लिए 8000 से ज्यादा शिक्षक, शिक्षा मित्र और अनुदेशक नियुक्त है. कायाकल्प योजना का लाभ न पाने वाले इन सभी विद्यालयों में स्थिति बद से बदतर नजर आती है.
ग्रामीणों ने लगाए ये आरोप-
इस बारे में जब ईटीवी भारत ने मझारी ग्रामसभा के ग्रामीणों से बात की तो उन्होंने बताया कि स्कूल का भवन पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं. यहां पर पठन-पाठन कार्य के लिए आने वाले बच्चे और शिक्षक अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ते-पढ़ाते हैं. बरसात का मौसम है इसलिए विद्यालय के छतों से पानी भी रिसता है. कमरों के अंदर न तो बैठने की व्यवस्था है. न ही सही से पढ़ाने की. विद्यालयों की हालत इतनी खस्ता है कि थोड़ी सी भी बरसात हो जाए तो पूरे विद्यालय परिसर में पानी भर जाया करता है.
ग्रामीण आरोप लगाते हुए कहते हैं कि अधिकारी आते तो है, लेकिन चेक करके चले जाते हैं. उसके बाद कोई असर दिखाई नहीं देता. अगर असर दिखता तो विद्यालयों की तस्वीर ऐसी नहीं होती.
अभी हाल ही में जिले के सभी एसडीआई द्वारा जर्जर विद्यालयों की जांच करवाई गई है. सभी एसबीआई ने अपनी-अपनी रिपोर्ट जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के पटल पर सौंप दी है. जल्दी मुख्य विकास अधिकारी, जिलाधिकारी व अन्य उच्चाधिकारियों से विषय में मंत्रणा कर के बजट के लिए अनुरोध किया जाएगा. जैसे ही बजट पास होगा, कायाकल्प योजना के तहत काम शुरू कर दिया जाएगा.
- हरिहर प्रसाद, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी