बलरामपुर: जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए तमाम युक्तियां कागज में बढ़िया काम कर रही हैं, लेकिन जमीनी स्थिति में लगातार गिरावट जारी है. जिले के कुछ ब्लॉक तो नीति आयोग की ओर से निर्धारित तमाम इंडिकेटरों में बहुत अच्छा कर रहे हैं. वहीं कुछ की स्थिति डांवाडोल नजर आ रही है. बेहतर न करने वाले ब्लॉकों के कारण जिले का डेटा भी खराब हो रहा है. वैसे नीति आयोग के अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट में बलरामपुर ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश में पहला स्थान और देश में 15वां स्थान प्राप्त किया है.
संस्थागत प्रसव आज भी चुनौती
बलरामपुर जिले में शिक्षा की कमी और रूढ़िवादी मान्यताओं के कारण आज भी महज 51.53 महिलाएं ही अस्पतालों में अपनी प्रजनन प्रक्रिया पूरा कर पाती हैं. स्थिति सुधारने के दावों के बीच 48.47 फीसदी महिलाएं तमाम कारणों से अस्पताल तक नहीं पहुंच पाती हैं. अगर स्टिल बर्थ की बात करें तो जिले में महज दिसंबर माह में ही 15 बच्चों की मौत जन्म के एक माह के भीतर या जन्म के दौरान ही मौत हो गई थी, जबकि इस डेटा का राष्ट्रीय औसत 12 है.
अस्पतालों में होती है वसूली
ईटीवी भारत ने संस्थागत प्रसव का जमीनी हकीकत जानने के लिए जिले के सुदूर इलाके पचपेड़वा में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का रुख किया. यहां पर तमाम तरह की अव्यवस्थाएं नजर आईं. मसलन, प्रसूताओं को मिलने वाली सुविधाएं न के बराबर दिखीं. लेबर रूम से लेकर महिला वार्ड तक में गंदगी का भरमार दिखा. लेबर स्ट्रेचर पर न केवल खून के दाग दिखे, बल्कि लेबर रुम में हाइजीन की कमी भी दिखी.
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वहीं प्रसूताओं के साथ आए तीमारदारों ने बताया कि यहां पर जननी शिशु सुरक्षा योजना के मातहत मिलने वाली सुविधाओं का निहायत आभाव है. न ही खाना मिलता है, न ही नाश्ता. बेबी पैड और सेनेटरी पैड लेकर दवाइयां तक बाहर से लाना पड़ता है. कुछ तीमारदारों ने यहां तक कहा कि अस्पताल परिसर में गंदगी रहती है. बेड पर चद्दर और कंबल तक नहीं है. इस कारण असुविधा होती है.