उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

बलरामपुर: यूपी में कुपोषण का 'कहर' गांव- गांव, शहर-शहर - प्रदेश में कुपोषण

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में कुपोषण का कहर जारी है. इसी क्रम में इससे ज्यादा दयनीय स्थिति में बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, आजमगढ़, शाहजहांपुर जैसे जिलों में काफी गंभीर समस्याएं है. कुपोषण से ग्रसित उत्तर प्रदेश के 29 जिले हैं, जो रेड श्रेणी में आते हैं.

etv bharat
यूपी के कई जिले कुपोषण की जद में

By

Published : Nov 29, 2019, 3:05 PM IST

बलरामपुर: विश्व भर में कुपोषण की बात की जाती तो सबसे पहले दुबले-पतले व कमजोर बच्चों की छवि दिमाग में आती है, जिसे खाने के लिए भरपेट भोजन नहीं मिल पाता है. पर आज कुपोषित होने के मायने बदल रहे हैं. आज कुपोषण की परिभाषा भी बदल रही है. दुबले पतले और कमजोर बच्चे ही कुपोषण का शिकार नहीं है. बल्कि ओवर वेट वाले बच्चे भी कुपोषण के शिकार है.


यूनिसेफ द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार जो तथ्य सामने आए हैं. वह कहीं ना कहीं चौकानेवाले हैं.'द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड चिल्ड्रन 2019' के अनुसार दुनिया में 5 साल से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा यानी 70 करोड़ बच्चे आज कुपोषण के शिकार हैं. भारत में यदि इस डेटा के अनुसार कुपोषित बच्चों की संख्या की बात की जाए तो वह 35.5 प्रतिशत होती है. वही, कुपोषण से ग्रसित उत्तर प्रदेश के 29 जिले हैं, जो रेड श्रेणी में आते हैं, जिनमें 46.3 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं.


कुपोषण के खिलाफ यूपी कब जीतेगा जंग
प्रदेश के अन्य जिलों में इससे भी बुरा हाल है, जिनकी स्थिति एकदम दयनीय है. उत्तर प्रदेश में कुपोषण से होने वाली मौतें सबसे अधिक है. प्रदेश में 5 साल से कम उम्र के 3,80,000 बच्चे हर साल मौत के मुंह में समा जाते हैं. इन आंकड़ों का विश्लेषण करें तो सामने आता है कि हर रोज 650 बच्चे कुपोषण से मर जाया करते हैं. उत्तर प्रदेश में 5 साल तक की उम्र के 46.3 प्रतिशत बच्चे बौनेपन का शिकार है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार भी उत्तर प्रदेश में कुपोषण की स्थिति दयनीय नजर आती है.

'कुपोषण' से खोता बचपन


सदन में चर्चाओं का विषय नहीं रहा कुपोषण
कुपोषण मामले में बिहार के बाद उत्तर प्रदेश कुपोषण के दूसरे पायदान पर आता है. उत्तर प्रदेश में कुपोषण से होने वाली मौतें कभी राजनीतिक दलों के एजेंडे में रही ही नहीं है. इस विषय पर ना तो व्यापक तौर पर चर्चा हुई और ना ही इन आंकड़ों को लेकर कभी विधानसभा या लोकसभा में हंगामा ही हुआ.

यूपी के कई जिले कुपोषण की जद में


बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है असर
बच्चों में पोषण की कमी का सीधा प्रभाव उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है. इस कारण बच्चों के दिमाग का पूर्ण विकास न हो पाता. कमजोर याददाश्त, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी और संक्रमण एवं बीमारियों का खतरा मुख्य है.

मासूम आंखों की चमक बुझाती भूंख की कहानी


बच्चों को संतुलित आहार नहीं मिल पाता
बचपन से ही संतुलित आहार नहीं ले रहे. आंकड़ों के अनुसार 6 से 23 महीने की उम्र के 44 प्रतिशत बच्चों को भोजन में फल, सब्जियां नहीं मिल पाती है जबकि 59 प्रतिशत बच्चों को दूध, दही, अंडे, मछली और मांस आदि नहीं मिल रहा.

तन ढकने को कपड़े नहीं, न भरने को पेट निवाला


मां नहीं करा रही स्तनपान
छह महीने से कम उम्र के 5 में से केवल 2 नवजात शिशुओं को अपनी मां का दूध मिल रहा है. बच्चों को जरुरी स्तनपान नहीं कराया जा रहा. इसी क्रम में यूपी में भी मां अपने बच्चें को स्तनपान नहीं करा रही हैं क्योंकि वह खुद भी कुपोषण का शिकार है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब परिवारों के 6 से 23 महीने की उम्र के केवल 5 में से 1 बच्चे को पोषित आहार नसीब हो सका.

ABOUT THE AUTHOR

...view details