बलरामपुर:जिले के सुदूर गांवों में बसने वाले परिवारों की बच्चियों को इस समाज में बेहतर स्थान मिल सके, वह भी पढ़-लिख कर अपने सपनों को उचाइयां दे सकें, इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों की स्थापना की थी. इसके बावजूद शिक्षा के मामले में देश के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार बलरामपुर में स्थिति बदलने का नाम नहीं ले रही है.
जिले में 11 कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय स्थापित हैं, जिनमें गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाली तकरीबन 1100 बालिकाएं अपने सपनों को उड़ान देने के लिए पढ़ाई करती हैं. हालांकि, शिक्षकों की मनमानी और भ्रष्टाचार का दीमक इनकी जिदगियां तबाह करने में लगा है.
ये हैं समस्याएं
आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से ताल्लुक रखने वाले बच्चों को बेहतर शिक्षा के साथ-साथ रहने व खाने की भी व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है. यहां पढ़ने वाले बच्चों की शिकायत है कि यहां ना तो अच्छा भोजन मिल पाता है और न ही इन्हें पढ़ाई की बेहतर सुविधाएं. कारण है कि शिक्षक और कर्मचारी आए दिन नदारद रहते हैं. खाने की समस्याओं पर बात करते हुए बालिकाएं कहती हैं कि कभी सही नाश्ता नहीं मिलता, तो कभी सही भोजन नहीं मिलता. मेन्यू तो बना हुआ है, लेकिन भोजन उसके अनुसार नहीं दिया जाता है.
क्या कहते हैं आंकड़ें
जिले में 11 कस्तूरबा आवासीय बालिका विद्यालय संचालित हैं. इन सभी विद्यालयों में कक्षा 6 से 8 तक की पढ़ाई ब्लॉक मुख्यालय स्तर पर करवाई जाती है. इनमें से तीन विद्यालयों का संचालन महिला समाख्या द्वारा किया जाता है. वहीं आठ विद्यालयों को बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है. इन विद्यालयों में पढ़ने वाली बेटियां आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से ताल्लुक रखती हैं. इनमें अध्यनरत बालिकाओं की संख्या 1093 है. इन विद्यालयों में कुल 165 शिक्षक और कर्मचारी तैनात हैं. वहीं सभी विद्यालयों में अभी कुल 4 पद रिक्त बताए जाते हैं. इन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए सरकार रोजाना प्रति बालिका कम से कम 120 रुपए खर्च करती है. इनमें से 50 रुपए भोजन पर ही खर्च होता है. इन विद्यालयों का संचालन जवाहर नवोदय विद्यालय के तर्ज पर किया जाता है.