बलरामपुर:शारदीय और चैत्र नवरात्रि में जिले के मां देवीपाटन शक्तिपीठ में देश-विदेश से श्रद्धालु मन में मनोकामनाएं लेकर आते हैं और मां दुर्गा के भव्य स्वरूप का दर्शन करते हैं. मान्यता है कि 51 शक्तिपीठों में से एक मां देवीपाटन शक्तिपीठ में हिमालय की पुत्री माता सती का वाम स्कंध गिरा था. शारदीय नवरात्रि के दिनों में मंदिर प्रांगण में 15 दिन का राजकीय मेला लगता है. चैत्र नवरात्रि में एक माह तक चलने वाले भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. शारदीय नवरात्रि में नौ दिन तक मां भगवती की यहां पर विशेष पूजा अर्चना होती है, जिसका अपना पौराणिक महत्व है.
यहां गिरा था माता सती का वाम स्कंध
स्कंद पुराण में मिलते विवरणों के अनुसार प्रजापति दक्ष के यज्ञ कुंड में माता सती ने भगवान शिव के अपमान से आहत होकर प्रवेश कर अपने शरीर का परित्याग कर दिया था. यह सुनकर भगवान शिव यज्ञ स्थल पर पहुंचे. व्यथित शिव ने अपने कंधे पर माता सती का शरीर रखकर इधर-उधर घूमना और तांडव करना शुरू कर दिया. इससे सृष्टि के संचालन में बाधा पैदा होने लगी. तब देवताओं ने भगवान विष्णु से इसका हल निकलने के लिए प्रार्थना की. नारायण ने अपने चक्र से माता सती के शरीर को काटकर गिराना शुरू किया. जिन 51 स्थानों पर सती के अंग गिरे, वह सभी शक्तिपीठ कहलाए. देवीपाटन में सती का वाम स्कंध पट सहित गिरा था. इससे यह स्थल सिद्धपीठ देवीपाटन के रूप में विख्यात हुआ.
पढ़ें:- Navratri 2019 : मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए लगा भक्तों का तांता
माता सीता ने यहां किया था पाताल लोक में प्रवेश
इस सिद्ध पीठ के बारे में एक अन्य मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि भगवती सीता ने इस स्थल पर ही पाताल लोक में प्रवेश किया था. इसका साक्ष्य गर्भ गृह में चांदी से ढंका चबूतरा है. इस कारण पहले यह पातालेश्वरी देवी कहा जाता था. बाद में यह शब्द अपभ्रंश होने के कारण पाटेश्वरी हो गया. विद्वानों का मानना है कि सती प्रकरण ही अधिक प्रमाणिक है और शक्ति के आराधना स्थल होने के कारण यह शक्तिपीठ प्रसिद्ध है. यह मंदिर नाथ सम्प्रदाय की व्यवस्था में होने के कारण ही सती प्रकरण की पुष्टि होती है.