बलरामपुर:तकरीबन आठ महीने पहले उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में हुए बहुचर्चित गैंगरेप के बाद हत्याकांड की आवाज पूरे प्रदेश में गूंजी थी. सूबे के तेज तर्रार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीड़ित परिवार से खुद मिलकर मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में कराने सहित नौकरी और जमीन देने सहित तमाम वादे किये थे, लेकिन समय बीतने के साथ इस जघन्य हत्याकांड की आवाज अधिकारियों की फाइलों में दब गई. अब ये वादे न तो उनके अधिकारियों को याद हैं और न ही उनके स्थानीय विधायकों व नेताओं को. पीड़ित परिवार को पैसे के अलावा न तो अभी तक किसी प्रकार की ठोस सहायता मिली और न ही इंसाफ.
जानकारी देते अपर जिलाधिकारी. क्या था शुरुआती मामला
हाथरस कांड के बाद एक और मामला काफी सुर्खियों में आया था, वो बलरामपुर के गैंसड़ी थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले एक गांव की रहने वाली, बीकाॅम में पढ़ने वाली, दलित परिवार की बेटी से गैंगरेप के बाद हत्या का मामला था.
खूब हुई थी इस मामले पर राजनीति
इस गैंगरेप के मामले में सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक लोगों ने अपनी राजनीतिक रोटियां खूब सेंकी, लेकिन पीड़ित परिवार को अभी तक इंसाफ नहीं मिल सका है. सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के आश्वासन और वायदों पर भी जिले आला-अधिकारियों ने ध्यान तक नहीं दिया, जबकि पीड़ित परिवार लगातार उनके दफ्तर के चक्कर काट रहा है.
क्या है पूरा घटनाक्रम
29 सितम्बर 2020 को गैसड़ी थाना क्षेत्र में रहने वाली 22 वर्षीय होनहार बेटी के साथ गांव के ही दरिंदों ने न सिर्फ क्रूरता पूर्वक गैंगरेप किया बल्कि उसके अधमरे शरीर को एक रिक्शे पर लादकर घर के पास फेंककर चले गए. जब तक परिवार कुछ समझ पाता और पीड़िता को सही इलाज मिल पाता, उसकी मौत हो गई.
यही से शुरु हुआ था 'मिशन शक्ति अभियान'
घटना की संवेदनशीलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सूबे में महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन के लिए शुरू किए गए 'मिशन शक्ति अभियान' की शुरुआत सीएम योगी आदित्यनाथ को बलरामपुर से ही करनी पड़ी और इस घटना का जिसका जिक्र भी सीएम योगी आदित्यनाथ ने मंच से किया. पीड़ित परिवार को न्याय का भरोसा उन्होंने खुद मंच से हजारों लोगों के सामने और मीडिया के सामने दिलाया था.
छोटे-बड़े दलों ने भी दिलाया था मदद का भरोसा
बलरामपुर के इस बेटी की इस निर्मम हत्या के बाद जब मामले ने तूल पकड़ा तो तमाम छोटे-बड़े दलों के प्रतिनिधियों ने पीड़ित परिवार के घर पहुंचकर हर संभव मदद और न्याय दिलाने का आशवासन दिया. सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी पीड़िता के घर की चौखट पर पहुंचकर दोषियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई का भरोसा दिलाया. इस मामले पर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, अधिकारियों व सूबे के मुख्यमंत्री सहित तमाम भीड़ जुटी, लेकिन आठ महीने बाद आज भी नतीजा सिफर है.
मुख्यमंत्री योगी खुद मिले थे पीड़ित परिवार से
सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने भी पीड़ित परिवार से मिलकर पूरी सहायता करने की बात कही थी. पीड़ित परिवार का कहना है कि पहली बात, उस वक्त मदद की भी गई, लेकिन जीविकोपार्जन के लिए जो पट्टे की जमीन दी गई, जिला प्रशासन आज तक उस जमीन पर कब्जा तक नहीं दिलवा सका है। दूसरी बात, परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की बात की गई थी, लेकिन नौकरी आज तक नहीं मिली. चीनी मिल में अस्थाई नौकरी मिल रही थी, उसका कोई मतलब नहीं है. वो जब चाहें तब निकाल सकते हैं. अगर यही नौकरी स्थाई हो जाए तो हमें करने में कोई परेशानी नहीं है. तीसरी बात, मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में करने का वादा किया गया था, लेकिन सुनवाई जस की तस है. इतना ही नहीं मामले में अभी तक पीड़ित परिवार सहित अन्य लोगों का बयान तक नहीं हो सका है.
जिलाधिकारी ने मामले से झाड़ लिया पल्ला
मामले में पीड़ित परिवार प्रशासन की ओर से सहायता न मिलने की बात कर रहा है तो वही इस मामले को लेकर जिलाधिकारी श्रुति से जब सवाल किया गया तो उन्होंने कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया और कुछ भी मालूम न होने की बात कह कर पल्ला झाड़तीं नजर आईं. उन्होंने इस मामले पर एडीएम प्रशासन अरुण कुमार शुक्ला से बात करने को कहा.
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क्या बोले एडीएम प्रशासन
एडीएम प्रशासन अरूण शुक्ला मामले में प्रशासन का पक्ष रखते हुए बताते हैं कि हमसे जितना भी बन पड़ा उतना हमने किया. पीड़ित परिवार को मुआवजे की पूरी राशि प्रदान की जा चुकी है. इसके साथ ही उसे जमीन पर पट्टा भी उपलब्ध करवाया जा चुका है. नौकरी के लिए शुगर मिल में प्राइवेट नौकरी के लिए संपर्क किया गया था, लेकिन पीड़ित परिवार के सदस्य ने नौकरी करने से मना कर दियाय. मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में होने की बात पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
कब मिलेगा न्याय, कब बहुरेंगे दिन
मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलने की बाट जोह रहे परिवार को आठ माह बीत जाने के बाद भी न्याय नहीं मिल सका. प्रशासनिक लापरवाही से दरिंदगी का शिकार उस बेटी का परिवार अभी तक एक अदद नौकरी और जमीन के कुछ टुकड़ों के लिए तरस रहा है. हैवानियत का शिकार हुई बेटी पढ़ लिखकर किसी ऊंचे ओहदे पर पहुंचना चाहती थी, जिससे न केवल परिवार का नाम रोशन हो बल्कि परिवार सामाजिक और आर्थिक रूप से संपन्न भी हो सकेगा, लेकिन यह सपना हैवानियत के कारण धरा का धरा राह गया. अब देखना ये है कि दरिंदगी का शिकार हुई बेटी के परिवार को आखिर कब तक इंसाफ के साथ सरकारी मदद भी मिल सकेगी और कब तक या परिवार न्यायालय उच्च अधिकारियों के दफ्तर के चक्कर काटता रहेगा?