बलरामपुर: बीते सालों की तरह एक और नया साल भी बीत जाएगा, लेकिन तस्वीर बदलनी चाहिए...इसका इंतजार अभी भी बना हुआ है. एक तरफ जहां लोग आने वाले नए साल की सुंदर तस्वीर बनाने में लगे हैं तो वहीं एक तस्वीर है जो अभी भी अंधेरे की स्याही से लबरेज नजर आ रही है. सरकारें तो आती जाती रहेंगी और हर बार जनता से यही वादा भी करती हैं कि वह देश की तस्वीर बदल देंगी, लेकिन वहीं एक तस्वीर ऐसी भी है, जिसे बदलने के लिए न जाने कितनी सरकारों का इंतजार करना पड़ेगा .
बलरामपुर में कुपोषण से ग्रसित बच्चे. यह तस्वीर है कुपोषण की, जो लगातार देश के भविष्य को अंधकारमय बना रही है. इसकी वजह से किसी ने अपना बचपन खोया तो किसी के घर के आंगन की किलकारियां खुशी में नहीं तब्दील हो पाईं. देश में गांव से लेकर शहर तक इस बीमारी ने लाखों जिंदगियों को निगल लिया. सोचिए आखिर उस मां पर क्या गुजरती होगी, जिसका बच्चा सही पोषण न मिल पाने की वजह से गोद में ही दम तोड़ देता होगा. वहीं उस पर क्या बीतती होगी, जिसका बच्चा दौड़ना तो चाहता है लेकिन दो पग भी सही से चल नहीं सकता है.
2019 की यूनिसेफ रिपोर्ट के मुताबिक
भारत में हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है. यह हालात तब है जब हर साल 1 लाख करोड़ रुपये का अनाज बर्बाद हो जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मेघालय समेत मध्य प्रदेश में कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या अधिक है.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट
देश में 39 प्रतिशत बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास कम है. इनमें से सबसे ज्यादा 49 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में हैं. रिपोर्ट की मानें तो उत्तर प्रदेश में ही 33 प्रतिशत बच्चों के वजन में कमी का आंकड़ा सामने आया है. वहीं एक और आंकड़े के मुताबिक बलरामपुर कुपोषण में सबसे ज्यादा ग्रसित जिला है.
बलरामपुर जिले में कुपोषण का कहर
कुपोषण के कारण 35 साल की सुकाई के दो बच्चे मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए हैं. अश्रुन्निशा, जो 21 साल की हैं, इनका एक साल का बेटा कुपोषण के कारण अभी तक चल और बैठ तक नहीं पाता है. वहीं शाहना का 3 साल का बेटा अभी महज एक साल के बच्चे जैसा ही लगता है. ग्राम सभा खमौहा गांव में भी ऐसे ही 30 परिवार हैं, जिनके बच्चे कुपोषण से जिंदगी और मौत के बीच की लड़ाई रोजाना लड़ रहे हैं.
सरकारी संस्थाओं का दावा है कि जिले में कुल 2,85,161 बच्चे हैं जो 0 से 6 साल की उम्र के हैं. जिनमें कुल कुपोषित बच्चों की संख्या तकरीबन 31,000 है. इनमें सैम यानी सीवियर एक्यूट मॉलन्यूट्रिशन वाले बच्चों की संख्या 8,690 है, जबकि मैम यानी मॉडरेट एक्यूट मॉलन्यूट्रिशन से पीड़ित बच्चों की संख्या 22,377 है.
बलरामपुर के 9 ब्लॉक कुपोषण की जद में
नवंबर माह के आंकड़ों को आधार मान लिया जाए तो जिले के सभी 9 ब्लॉकों में महज 468 (सैम) और 1491 (मैम) बच्चों को कुपोषण के कलंक से बाहर निकाला जा सका है. वहीं जिले में कुल 29,108 बच्चों को अभी भी कुपोषण के कलंक से बाहर निकाला जाना बाकी है.
आखिर कब मिटेगा कुपोषण का कलंक
हम ऐसा भी नहीं कह सकते कि सरकारें इस आंकड़े को बदलने के लिए कुछ करती नहीं हैं. प्रयास तो किए जाते हैं पर जब सिस्टम में कुपोषण हो गया हो तो भला तस्वीर बदले भी तो कैसे सवाल तो इस बात का है. कई कद्दावर नेताओं ने न जाने कितने लंबे भाषण दिए होंगे, न जाने कितने वादे किए होंगे और साथ ही बाल विकास के लिए कितनी योजनाएं तैयार की होंगी. नई योजनाओं के लिए करोड़ों रुपयों का बजट भी तैयार किया गया होगा, लेकिन ये योजनाएं मां के माथे पर खिंची चिंता की लकीरों और बच्चों की पसलियों से झांकते भविष्य को बदल पाने में नाकाम साबित हो रही हैं.
हालांकि महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने 2022 तक देश को कुपोषण मुक्त बनाने का दावा किया है और राष्ट्रीय पोषण मिशन की शुरूआत की है, जिसके बाद अब यह माना जा रहा है कि कुपोषण का यह कलंक कम हो सकेगा और कई जिंदगियां खुशियों के आंगन में किलकारियां ले सकेंगी.