बलिया: बारिश के कारण गंगा और घाघरा नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है. पानी का बहाव तेज होने के कारण तटवर्ती इलाकों में कटान तेजी से हो रहा है. वहीं सैकड़ों बीघा उपजाऊ जमीन पर जलभराव हो गया है. स्थानीय प्रशासन दावा कर रहा है कि कटानरोधी कार्य तीव्र गति से कराए जा रहे हैं.
बलिया पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर की जन्म और कर्म भूमि भी रही है. बलिया महर्षि भृगु का तपोभूमि भी रही है. बलिया दो नदियों के बीच पूर्वांचल का महत्वपूर्ण जिला है. यहां एक ओर गंगा तो दूसरी ओर नेपाल से चलकर बिहार जाने वाली घाघरा नदी है.
गंगा और घाघरा नदी का बढ़ रहा जलस्तर.
दोनों नदियां किसानों के लिए वरदान और अभिशाप साबित होती हैं. बलिया के दक्षिणी छोर पर गंगा का बहाव है, तो वहीं उत्तरी छोर पर घाघरा नदी बहती है. बारिश के कारण दोनों नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है. घाघरा नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण कटान लगातार जारी है. घागरा के किनारे बसे दर्जनों गांव बाढ़ की चपेट में हैं. तटवर्ती इलाके में बसे लोग सुरक्षित स्थानों पर जाने लगे हैं.
घाघरा के कटान से सैकड़ों एकड़ जमीन हुई जलमग्न
कोरोना काल में जिंदगी की गाड़ी को चलाने की जद्दोजहद में किसान कड़ी मेहनत से अपने खेतों पर धान की रोपाई कर चुके हैं. घाघरा नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण सैकड़ों एकड़ खेती की जमीन जलमग्न हो गई है और किसानों की मेहनत और लागत पर पानी फिर गया है. बांसडीह तहसील क्षेत्र के रिगवन, नौका, ककरघट्टा, सुल्तानपुरा, गोड़वली, खादीपुर, पर्वतपुर, सारंगपुर, कोलकला आदि कई गांवों में बाढ़ के कारण कटान हो गया है.
19 बंधे हैं नदियों पर
बलिया जिले में गंगा, घाघरा और टोंस नदियां अलग-अलग दिशा में बहती हैं. गंगा और घाघरा बैरिया विधानसभा क्षेत्र से होते हुए शहर के पूर्वी छोर पर मिल जाती हैं और बिहार जाती हैं. बाढ़ खंड विभाग के अनुसार जिले में 8-8 बांध गंगा और घाघरा नदी पर हैं, जबकि टोंस नदी पर तीन बांध बने हैं. जिले में तूर्तिपार श्रीनगर बांध की लंबाई 77 किलोमीटर है, जो घाघरा नदी के किनारे है. बाढ़ खंड विभाग के अधिशासी अभियंता के अनुसार जिले में अभी ककरघट्टा गांव के पास डाउन स्ट्रीम में कटान हो रहा था, जहां कटान रोधी कार्य कराया गया है.
ग्रामीणों ने कहा, मानक के अनुसार नहीं हुआ काम
घाघरा नदी में आई बाढ़ से कटान लगातार जारी है. नदी का जलस्तर अब खतरे के बिंदु को पार कर चुका है. बांसडीह इलाके के दर्जनों गांव में कटानरोधी कार्य हुए, लेकिन वह मानक के अनुरूप नहीं हुए. नौका गांव के ग्रामीण विभाग द्वारा कराए गए कटानरोधी कार्य से संतुष्ट नहीं हैं. ग्रामीण जितेंद्र सहनी ने बताया कि अधिकारी गांव में आए और काम भी शुरू कराया, लेकिन सभी स्थानों पर एक समान काम नहीं हुआ. बालू और ईंट की भरी हुई बोरियां कटान रोकने में प्रयोग की गईं, लेकिन वह भी पानी में बह गईं. उन्होंने बताया कि हमारी 3 बीघा खेती बाढ़ के कारण जलमग्न हो गई है.
खतरे के निशान से ऊपर बह रही घाघरा नदी
साल 2019 में गंगा नदी का जलस्तर इतना ज्यादा बढ़ गया था कि दुबे छपरा रिंग बांध टूट गया था. इस कारण करीब 200 से अधिक गांव बाढ़ की चपेट में आ गए थे. इस साल भी गंगा उफान पर है, लेकिन जिले के उत्तरी छोर पर घाघरा नदी ने तबाही मचाना शुरू कर दिया है. घाघरा नदी लाल निशान से ऊपर बह रही है. बाढ़ खंड विभाग के अनुसार घाघरा नदी का खतरा बिंदु 64.01 मीटर है, जिसे नदी ने पार कर लिया है. जिले में अब नदी 64.390 मीटर पर बह रही है, जबकि गंगा का डेंजर पॉइंट 57.615 मीटर है, जिससे अभी गंगा नदी 3 मीटर नीचे है.
करोड़ों रुपये की लागत के बना था दुबे छपरा रिंग बांध
दुबे छपरा रिंग बांध का कुछ हिस्सा 2016 में बह गया था, जिसके बाद तत्कालीन सपा सरकार में 29 करोड़ रुपये की लागत से इसकी मरम्मत कराई. मानक को लेकर ग्रामीणों ने विरोध भी किया था. साल 2018 में हल्की बाढ़ में ही बांध में दरार आ गई. आनन-फानन में 40 लाख रुपये की लागत से फिर बांध की मरम्मत कराई गई. वहीं 2019 में जनप्रतिनिधि, अधिकारी और ठेकेदार की मिलीभगत की पोल खुल गई. 16 सितंबर 2019 को करोड़ों रुपये की लागत से बना दुबे छपरा रिंग बांध गंगा में बह गया. उस दौरान बाढ़ का पानी हाईवे तक पहुंच चुका था. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बाढ़ ग्रस्त इलाके में आकर लोगों को राहत सामग्री वितरित की थी और बांध के जल्द दुरुस्त करने के निदेश दिए थे.
बाढ़ आने के बाद भी किसानों को उम्मीद
घाघरा नदी के तटवर्ती गांव के किसानों कि काफी जमीन बाढ़ में कट कर बह गई है. इसके बाद भी शेष बची जमीन पर किसान धान की रोपाई करने में जुटे हैं. किसान दीपक को उम्मीद है कि घाघरा का जलस्तर इससे ऊपर नहीं जाएगा और जल्द ही जलस्तर कम हो जाएगा. वहीं किसानों का कहना है कि अगर बची खेती पर धान की रोपाई नहीं करेंगे, तो जीवन यापन कैसे होगा. किसानों को सरकार से भी मदद की आश है. पूर्वांचल और आसपास के जिले में अमूमन जुलाई के अंत और अगस्त में बारिश होती है, लेकिन इस साल जून के मध्य में ही मानसून आने से गंगा और घाघरा का जलस्तर लगातार बढ़ता गया. वहीं सरयू के जलस्तर में वृद्धि दो महीना पहले ही हो गई.
अधिकारी लगातार कर रहे दौरा
घाघरा नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है. इसको लेकर जिला प्रशासन सतर्क हो गया है. बांसडीह तहसील के उपजिलाधिकारी और तहसीलदार लगातार बाढ़ ग्रस्त इलाकों का दौरा कर रहे हैं. उप जिलाधिकारी दुष्यंत कुमार ने बताया कि कटानरोधी कार्य कराया जा चुका है, लेकिन यदि फिर भी कहीं पर कटान होता है, तो उसे रोकने के लिए बाढ़ विभाग को निर्देशित किया गया है. उन्होंने कहा कि हमारी प्राथमिकता जनधन को बचाना है. फिलहाल गांव तक अभी पानी नहीं पहुंचा है. हालांकि किसानों की उपजाऊ जमीन जलमग्न हो गई है.
बाढ़ खंड विभाग के अधिशासी अभियंता संजय कुमार मिश्रा ने बताया कि बलिया में घाघरा नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है. ककरघट्टा गांव के पास कटान का चिन्हांकन किया गया था, जहां पर बाढ़ बचाव कार्य पूरा कर लिया गया है. उन्होंने बताया कि गंगा नदी के किनारे दुबे छपरा रिंग बांध मरम्मत का कार्य 80 फीसदी पूरा हो चुका है. बाकी बचा काम भी जल्द ही पूरा हो जाएगा. घाघरा नदी द्वारा हो रहे कटान को देखते हुए उन्होंने आने वाले वर्ष में यहां के लिए एक प्रपोजल तैयार कर शासन को भेजने की बात भी कही.