बलिया: वेदव्यास को हम कृष्णद्वैपायन के नाम से भी जानते है. महर्षि वेदव्यास ने चारों वेदों और महाभारत की रचना की थी. हिन्दू धर्म में वेदव्यास को भगवान के रूप में पूजा जाता है. मान्यत: है कि आषाण माह की पूर्णिमा को वेदव्यास का जन्म हुआ था. यही वजह है कि इस पर्व को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.
गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और मुडिया पूनम के नाम से जाना जाता है. पुरातन काल में ऋषि, साधु, संत एक स्थान से दूसरे स्थान यात्रा करते थे और चौमासा या बारिश के समय वे 4 माह के लिए किसी एक स्थान पर रुक जाते थे. यही कारण है कि इन्हीं 4 महीनों में प्रमुख व्रत त्योहार आते हैं.
गुरु पूर्णिमा के दिन सभी लोग वेदव्यास की भक्तिभाव से आराधना और अपने मंगलमय जीवन की कामना करते हैं. इस दिन हलवा प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. बंगाल के साधु इस दिन सिर मुंडाकर परिक्रमा पर जाते हैं. ब्रज क्षेत्र में इस पर्व को मुड़िया पूनम के नाम से मनाते हैं और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं. कोई इस दिन ब्रह्मा की पूजा करता है तो कोई अपने दीक्षा गुरु की. इस दिन लोग गुरु को साक्षात भगवान मानकर पूजन करते हैं.
इस दिन को मंदिरों, आश्रमों और गुरु की समाधियों पर धूमधाम से मनाया जाता है. भारत में पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक सभी जगह गुरुमय हो जाती है. मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में धूनी वाले बाबा की समाधि पर यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन प्रदेश के साथ-साथ देश और विदेश से भी लोग आते हैं.
आषाढ़ की पूर्णिमा को ही क्यों मनाया जाता है पर्व
आषाढ़ की पूर्णिमा को यह पर्व मनाने का उद्देश्य है कि जब तेज बारिश के समय काले बादल छा जाते हैं और अंधेरा हो जाता है, तब गुरु उस चंद्र के समान है, जो काले बादलों के बीच से धरती को प्रकाशमान करते हैं. 'गुरु' शब्द का अर्थ ही होता है कि तम का अंत करना या अंधेरे को खत्म करना.