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बलिया का वह गांव जहां की हजारों गोल्डन फिश हैं आकर्षण का केंद्र - बलिया का इतिहास

उत्तर प्रदेश का एक ऐसा जिला जिसका इतिहास बहुत ही रोचक है, जो इस समय चाइनीज गोल्डन फिश और ग्रीन ग्रासकटर मछलियां से भरे तालाब को लेकर सुर्खियां में है. आइए जानते हैं बलिया और उस गांव के बारे में जहां मछलियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं.

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बलिया का गोल्डन फिश का यह तालाब बन रहा आकर्षण का केंद्र.

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Published : Aug 6, 2020, 3:45 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:25 PM IST

बलिया:गांव का नाम आते ही हमारे जहन में खेत, झोपड़ी, परिषदीय स्कूल और तालाब की तस्वीर सामने आती हैं, लेकिन बलिया में एक ऐसा गांव है जो इसे बाकि के गांव से अलग बनाती हैं. बलिया के बांसडीह तहसील क्षेत्र के छितौनी गांव को प्राचीन तालाब गांव को अलग पहचान दिला रहा है. इस तालाब में हजारों की संख्या में गोल्डन फिश मछलियां हैं. जो दूरदराज से लोगों को यहां पर आने के लिए मजबूर कर देती हैं.

मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर छितौनी गांव में प्राचीन छितेश्वर नाथ महादेव का मंदिर है, जिसके ठीक सामने ही एक बड़ा तालाब है. तालाब स्वच्छ और साफ है. उसके चारों ओर पत्थर की सीढ़ियां भी बनी हुई हैं, लेकिन सबसे खास बात है कि इस तालाब में हजारों की संख्या में चाइनीज गोल्डन फिश और ग्रीन ग्रासकटर मछलियां हैं. यह मछलियां इस तालाब की शोभा बढ़ाती हैं. दूरदराज से लोग तालाब में इन मछलियों को देखने आते हैं.

बलिया का गोल्डन फिश का यह तालाब बन रहा आकर्षण का केंद्र.

400 वर्ग फुट में बना है तालाब
छितेश्वर नाथ महादेव मंदिर के सामने यह तालाब शिव सरोवर के नाम से जाना जाता है, जिसका जीर्णोद्धार करीब 10 साल पहले किया गया था. इसके बाद लगातार गांव के लोगों द्वारा श्रमदान कर इस तालाब को साफ और स्वच्छ किया गया. तालाब के चारों ओर पैदल चलने के लिए मार्ग भी बनाया गया है. 400 वर्ग फुट में यह तालाब काफी विशाल प्रतीत होता है, जिसकी शोभा तालाब में रहने वाली रंगीन मछलियां बढ़ाती हैं.
कोलकाता से लाया गया इन मछलियों को
बताया जाता है कि स्वच्छता समिति के अध्यक्ष और व्यापारी कौशल मिश्रा ने कोलकाता से रंगीन मछलियों को लाया था, जिनमें चाइनीज गोल्डन फिश और ग्रीन ग्रासकटर मछलियां थी. उस दौरान इनकी संख्या बहुत कम थी, लेकिन वर्तमान समय में हजारों की संख्या में यह मछलियां इस तालाब में देखी जाती हैं. यह मछलियां तालाब के किनारे पर रहती हैं और जैसे ही कोई व्यक्ति इन्हें दाना खिलाने पहुंचता है, तो वे तालाब में पानी के ऊपरी सतह तक आ जाती हैं.
मछली को देखने आते हैं दूरदराज से लोग
गांव के तालाब में अलग-अलग मछलियां देखने को मिलती हैं, लेकिन इस तालाब में रंगीन मछलियों को देखने के लिए लोग दूर-दराज से आते हैं. सभी के लिए यह कौतूहल का विषय है. बलिया जिले के अलग-अलग इलाकों से भी लोग यहां इन मछलियों को देखने आते हैं. इसके अलावा जिले के बाहर से भी लोगों का आना यहां लगा रहता है.
जनप्रतिनिधियों का नहीं मिला सहयोग
क्षेत्र के विकास में जनप्रतिनिधियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती हैं. लेकिन इस तालाब के सौंदर्यीकरण और लाइटिंग के लिए जिले के जनप्रतिनिधियों की ओर से उदासीनता देखने को मिली. भाजपा के सांसद, भाजपा के विधायक और प्रदेश सरकार के मंत्री भी इस जिले से हैं, लेकिन उनका ध्यान इस ओर नहीं पहुंचा है. स्थानीय लोग आपस में मिलकर इस तालाब की व्यवस्था और स्वच्छता बनाने में जुटे हुए हैं. ग्रामीण इसे पर्यटन स्थल बनाने के लिए शासन में पत्र लिखने की बात कह रहे हैं.

बाबर और बलिया
बलिया जिले के नामकरण के बारे में भी ढेर सारी कहानियां हैं. बलिया गजेटियर के अनुसार, पौराणिक काल में यहां महर्षि भृगु के आश्रम में उनके पुत्र शुक्राचार्य द्वारा दानवराज दानवीर राजा बलि का यज्ञ सम्पन्न कराया गया था. संस्कृत में यज्ञ को याग कहा जाता है, जिससे इसका नाम बलियाग पड़ा था, जिसका अपभ्रंश बलिया है.

महाभारत के रचनाकार वेद व्यास जी का इसी भू भाग पर जन्म हुआ था. महाजनपदकाल में भी मल्ल, करूष राज्य के इस भू-भाग पर अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई. मुगलकाल में भी यह भू-भाग गतिविधि का केंद्र रहा. 5 मई 1529 ई. में बलिया जिले के घाघरा नदी के किनारे बाबर और महमूद लोदी के बीच एक निर्णायक युद्ध हुआ, जिसमें बाबर विजयी हुआ.

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:25 PM IST

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