बलिया: जिले के गांव ओझवलिया में आज ही के दिन हिंदी के निबंधकार, आलोचक और उपन्यासकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म हुआ था. जिन्होंने अपनी लेखनी से पद्मविभूषण तक का सफर तय कर अपने गांव का ही नहीं बल्कि अपने शहर अपने प्रदेश का नाम रोशन किया. लेकिन वहीं, आज भी उनका पैतृक गांव विकास की बगिया से कोसों दूर है. गांव में द्विवेदी जी की न तो कोई प्रतिमा लगाई गई है और न ही कोई स्मृति चिन्ह बनाया गया है.
ज्योतिषाचार्य के परिवार में हुआ जन्म
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म जिले के ओझवलिया गांव में 19 अगस्त 1907 को ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम अनमोल द्विवेदी और माता का नाम ज्योतिषमति था. अत्यंत सरल स्वभाव के आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई. इसके बाद उन्होंने वरसियापुर के मिडिल स्कूल से आगे की पढ़ाई पूरी की. इसके उपरांत काशी के रणवीर संस्कृत पाठशाला में संस्कृत की पढ़ाई करने चले गए.
1930 में ज्योतिष में आचार्य की मिली उपाधि
1929 में इंटरमीडिएट और संस्कृत में शास्त्रीय साहित्य की परीक्षा उत्तीर्ण की. 1930 में ज्योतिष विषय में आचार्य की उपाधि प्राप्त की. तभी से उन्हें आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कहा जाने लगा. हजारी प्रसाद द्विवेदी शांतिनिकेतन में जाकर अध्यापन का कार्य आरंभ किया. जहां से उन्हें स्वतंत्र लेखन के रूप में पहचान मिलने की शुरुआत हुई.
1957 में पद्म भूषण से किया गया सम्मानित
20 वर्षों तक शांतिनिकेतन में अध्यापन का कार्य करने के उपरांत वे काशी आ गए. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया. 1957 में देश के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें पद्म भूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ही नहीं बल्कि पंजाब विश्वविद्यालय में भी हिंदी के प्रोफेसर रहे. इसके बाद पुनः काशी हिन्दू विश्विद्यालय के विभागाध्यक्ष बने.
अपने जीवनकाल में ढेरों लिखी रचनाएं
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने जीवनकाल में ढेरों रचनाएं लिखी. जिसमें साहित्य का मर्म, सूर साहित्य, हिंदी साहित्य की भूमिका, मेघदूत, अशोक के फूल, कुटज, बाण भट्ट की आत्मकथा, चारु चंद्रलेख अनामदास का पोथा काफी प्रसिद्ध है.