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बहराइच के चार वन ग्रामों को खाली करने की नोटिस जारी

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Published : Dec 18, 2020, 3:09 PM IST

शुक्रवार को परिपूर्ण वन विभाग के 14 साल पूरे हुए. बहराइच जिले में चार वन ग्राम और 19 वन बस्ती ग्राम स्थित हैं. वन विभाग ने इन गांवों के लोगों को गांव खाली करने की नोटिस जारी की है.

जगह हो खाली
जगह हो खाली

बहराइच: जनपद के मिहिनपुरवा विकासखंड में चार वन ग्राम भवानीपुर, बिछिया, टेडिया, ढकिया और एक वनटांगिया ग्राम महबूबनगर और अन्य 19 वन बस्ती ग्राम मौजूद हैं. इनमें बिछिया बाजार नाम का वन ग्राम वर्ष 1890 में अंग्रेजों के द्वारा बसाया गया था, जिसके बहुत सारे लिखित दस्तावेजी प्रमाण मौजूद हैं. इन सभी वन ग्रामों के 1007 वन वासियों ने वर्ष 2009 में वन अधिकार कानून 2006 के तहत दावा फॉर्म भरे थे, जिनमें 93 लोगों के दावा स्वीकृत हो गए थे. शेष लोगों के दावे को वर्ष 2012 में उपखंड स्तरीय समिति ने सरसरी निगाह से देखकर बिना कोई कारण बताए खारिज कर दिया था. इस पर पुनः सुनवाई की प्रक्रिया चल रही है.

वन विभाग ने जारी की नोटिस
वन अधिकार कानून 2006 के मुताबिक, अध्याय 3 के धारा 5 में यह स्पष्ट वर्णित है कि जब तक मान्यता और सत्यापन की प्रक्रिया पूरी न हो जाए, तब तक किसी भी वन निवासी को बेदखल नहीं किया जा सकता है. बावजूद इसके इसी बीच वन विभाग ने लोगों को भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 61बी के तहत बेदखली की नोटिस जारी कर दी है. साथ ही कोरोना वायरस के इस संक्रमण काल में भी लगभग 81 लोगों को हर 15 दिन पर पेशी के लिए 100 किलोमीटर दूर बहराइच में प्रभागीय वन अधिकारी के कार्यालय पर जाना होता है. वन विभाग का कहना है कि आप जिस एरिया में रहते हैं, उस एरिया को क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट के तहत कोर जोन घोषित कर दिया गया है. इसलिये आपको यहां से हर हालत में बाहर निकलना ही होगा.

कई लोगों को नोटिस जारी.

सत्यापन की प्रक्रिया नहीं हुई शुरू
जब गांव वालों ने वन अधिकार समिति की बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया कि वह वन क्षेत्र से बाहर जाने के इच्छुक नहीं हैं तो वन विभाग ने नाराज होकर अप्रत्यक्ष बेदखली की कार्रवाई के तहत लोगों को अतिक्रमण की नोटिस जारी कर दी. इस पर तारीख चल रही है. 19 वन बस्ती ग्रामों में वन अधिकार समितियों का गठन हो चुका है, लेकिन अभी तक दावा सत्यापन की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है. पूर्व में एक वन ग्राम गोकुलपुर (दफादार गौड़ी) को सीएम योगी के द्वारा राजस्व ग्राम में परिवर्तित किया जा चुका है. शेष अन्य वन ग्रामों के राजस्व ग्राम में परिवर्तित होने की प्रक्रिया राज्य स्तर से राजस्व अनुभाग में विचाराधीन है. आवश्यकता इस बात की है कि शीघ्र अति शीघ्र वन ग्रामों को राजस्व ग्राम में परिवर्तित किया जाए, जिससे वन क्षेत्र में निवास करने वाले वन निवासियों के जीवन में भी खुशहाली आ सके.

2006 में पारित हुआ वन अधिकार अधिनियम
वर्ष 2006 में 15 दिसंबर के दिन वन निवासियों और आदिवासियों के अधिकारों को प्रदान करने वाला अनसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 लोकसभा में पारित हुआ था. देश के 20 करोड़ आदिवासियों और वनवासियों के लंबे संघर्ष के बाद भारत की संसद में वन अधिकार कानून पारित किया गया. इसके बाद 18 दिसंबर 2006 को यह कानून राज्यसभा में पास हुआ था. फिर 21 दिसंबर 2006 को राष्ट्रपति ने इस कानून पर हस्ताक्षर किए थे. यह कानून सर्वसम्मति से पारित हुआ था. इस कानून के बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि लंबे अरसे से चली आ रही वन वासियों की भूमि संबंधी सुरक्षा अब सुनिश्चित हो जाएगी.

अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के प्रयास से वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन के मामले में कुछ हद तक हुआ, लेकिन अभी बहुत कार्य होने बाकी हैं. मात्र 33 प्रतिशत लोगों तक इस कानून की पहुंच हो पाई है. अभी बहुत सारे क्षेत्रों में वन अधिकार कानून का प्रचार-प्रसार तक नहीं हुआ है और न ही अभी लागू किया जा सका है.

41 वन ग्राम राजस्व ग्राम हुए

जिन क्षेत्रों में इस कानून को लागू किया गया है, वहां पर भी जानकारी के अभाव में उपखंड और जिला स्तरीय समितियों ने बहुत सारे लोगों के दावे को खारिज कर दिया है. उत्तर प्रदेश में अब तक 41 वन ग्राम राजस्व ग्राम हो चुके हैं. इसमें गोरखपुर के पांच, महराजगंज के 18, बलरामपुर के 5, गोंडा के 5, बहराइच का 1, लखीमपुर के 3, सहारनपुर के 3 वन ग्राम शामिल हैं.

वन अधिकार कानून एक ऐसा कानून है, जो केवल पहले से मौजूद वन अधिकारों को मान्यता देने के लिए है. इस प्रकार, भूमि अनुदान या भूमि वितरण अधिनियम नहीं है. केवल 13 दिसंबर 2005 को वनभूमि के मूल कब्जे वाले लोग कानून के अनुसार पात्र हैं. इसके अलावा, अन्य पारंपरिक वन निवासी (ओटीएफडी) श्रेणी के लोग, जो दावे करते हैं, उन्हें पात्रता के लिए लगातार तीन पीढ़ी का अध्यासन स्थापित करना होगा.

जनजाति मामलों के मंत्रालय के सितंबर 2018 के बयान के अनुसार, आधिकारिक आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि देश भर में कुल 18,89,835 मालिकाना हक प्रदान किए गए हैं. बड़े पैमाने पर 72,23,132 हेक्टेयर या 72,000 वर्ग किमी सार्वजनिक भूमि (लगभग असम राज्य का आकार) प्रदान की गई है. इसके अतिरिक्त जिला/उपखण्ड के दो स्तरों के साथ कानून के तहत निर्धारित उचित प्रक्रिया के आधार पर कुल 19,34,345 दावा अस्वीकार किए गए हैं.

इसमें व्यक्तिगत दावे 18,88,066 हैं. ग्राम सभा स्तर पर 14,77,793 दावों को उक्त कथन के अनुसार खारिज कर दिया गया, जो कि व्यक्तिगत दावे के औसत क्षेत्र को लागू करके 19 लाख हेक्टेयर से अधिक हो सकता है. ये भारत के 5% से कम परिदृश्य पर कब्जा दिखाते हैं. 2008 के बाद से एफआरए के तहत 72 लाख हेक्टेयर से अधिक वनभूमि दी गई है.

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