बहराइच: चाइनीज वस्तुओं की चकाचौंध के कारण भारतीय प्राचीन कुम्हारी कला का अस्तित्व संकट में है. सस्ती चायनीज लाइटों और खिलौनों ने मिट्टी के दीये और खिलौनों की बिक्री की रफ्तार को रोक लगा दी है. कुम्हारी कला से जुड़े व्यवसायी और कारीगर बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
खतरे में कुम्हारी कला का अस्तित्व. बाजारों में चाइनीज वस्तुओं की भरमार
दीपावली की बहार शुरू होते ही बाजारों में चाइनीज वस्तुओं की भरमार शुरू हो गई है. सस्ते होने के कारण लोग चाइनीज वस्तुओं की ओर आकर्षित हो रहे हैं. चाइनीज वस्तुओं की चकाचौंध के बढ़ते प्रभाव के कारण प्राचीन भारतीय कुम्हारी कला का अस्तित्व खतरे में आ गया है. तमाम कोशिशों के बावजूद कुम्हारी कला से जुड़े कारीगर और दुकानदार अपना उत्पाद बाजार में बेच नहीं पा रहे हैं.
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बदहाली में व्यवसायी और कारीगर
हालात यह है कि कुम्हारी कला से जुड़े व्यवसाई और कारीगर बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं. पहले दीपावली का पर्व आने से महीनों पूर्व इस कला और व्यवसाय से जुड़े कारीगरों और व्यवसायियों के यहां महोत्सव जैसा माहौल रहता था. दिन-रात काम कर वह दीये, खिलौने, मूर्तियां बनाकर उनमें रंग रोगन का काम कर देते थे. अब उनके पास काम नहीं है. उन्हें अपनी जीविका चलाना मुश्किल हो रहा है.
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अस्तित्व खोती कुम्हारी कला
ऐसी स्थिति में भारतीय प्राचीन कुम्हारी कला अपना अस्तित्व खो रही है. यदि शासन प्रशासन ने कुम्हारी कला के अस्तित्व को बचाने के लिए ठोस पहल नहीं शुरू की तो बदहाली के इस दौर से गुजर रही कुम्हारी कला का अस्तित्व कहीं समाप्त होकर न रह जाए.