बहराइच:हमारे समाज में ऐसे बहुत ही कम लोग होते हैं जो दूसरों की सेवा में अपना सारा जीवन समर्पित कर देते हैं. हम मूक-बधिर बच्चों को देखकर अफसोस तो करते हैं, लेकिन शायद ही उनके लिए कुछ करने की सोचते हैं. जिले की रहने वाली बलमीत कौर ने मूक बधिर बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने में अपना सारा जीवन समर्पित कर दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की है.
पूरे परिवार ने कर दिया देहदान, अब बलमीत मूक-बधिर बच्चों को दे रहीं शिक्षा का दान - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर स्पेशल स्टोरी
बहराइच जिले के कानूनगो पुरा दक्षिणी शहर की रहने वाली डॉक्टर बलमीत कौर के छोटे भाई मूक बधिर हैं. अपने भाई की पीड़ा को देखते हुए बलमीत ने शहर के अन्य बच्चों को भी इस पीड़ा से बाहर निकालकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का काम किया.
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जिले के कानूनगो पुरा दक्षिणी शहर की रहने वाली डॉक्टर बलमीत कौर के छोटे भाई मूक बधिर हैं. भाई के न बोल पाने और न ही सुन पाने की पीड़ा इनके दिल में घर कर गई. तबसे इन्होंने ठान लिया कि जिले के ऐसे बच्चों को समाज में सिर उठाकर जीना सिखाएंगी.
टीन शेड में चला रही हैं स्कूल
जिले के मुख-बधिर और मंदबुद्धि बच्चों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए डॉक्टर बलजीत कौर वर्ष 1992 से सक्रिय हैं. इस स्कूल के माध्यम से वह मूकबधिर और मंदबुद्धि बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रही हैं. किसी तरह की सरकारी सहायता के अभाव में वह अपने सीमित संसाधनों से टीन शेड में स्कूल चला रही हैं.
भाई से मिली प्रेरणा
डॉक्टर बलमीत कौर का कहना है कि उनका एक भाई मूक बधिर था जिसे समाज की उपेक्षा और झिझकियों का सामना करना पड़ता था. उन्होंने शहर में कुछ ऐसे और बच्चों को देखा तो उनका मन द्रवित हो उठा. तब निर्णय लिया कि वह ऐसे बच्चों को पढ़ा लिखाकर, समाज की मुख्यधारा में जोड़ने का काम करेंगी. इसके लिए उन्होंने बाकायदा प्रशिक्षण लिया.
सुनने पड़े पड़ोसियों के ताने
उनका कहना है कि शुरुआती दौर में लोगों ने पागल कहकर ताने मारते थे. यहां तक लोग उन्हें पत्थर फेंक उनका अपमान करते थे. लोगों का कहना था कि जिसे डॉक्टर और विज्ञान ठीक नहीं कर सकता है. उन्हें पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करने का काम यह कैसे कर सकती हैं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह निरंतर अपने संकल्प में जुटी रही.
अविवाहित रहने का लिया निर्णय
उन्होंने बताया कि उन्होंने इन बच्चों के भविष्य के लिए जीवन भर अविवाहित रहने का निर्णय लिया है. ताकि वह इन बच्चों को अपना समझ कर उनके लिए समर्पित रह सकें. ऐसे बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए उन्होंने अपने पिता-माता, भाई और स्वयं का अंग दान कर दिया है. इससे मृत्यु के बाद भी उनका अंग ऐसे बच्चों के काम आ सके.
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मुख्यमंत्री ने किया था सम्मानित
उन्होंने बताया कि उनके पिता और माता की मौत होने के बाद उनके शरीर को मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया गया. बलमीत के इसी समर्पण को देखते हुए उन्हें महामहिम राज्यपाल राम नाईक और मंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. इसके अतिरिक्त उन्हें रूपायन अवार्ड और विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया है.