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रावण का वह प्राचीन मंदिर... जहां पूजा करने से पूरी होती है शादी की मनोकामना

देश में जहां दशहरे के मौके पर भगवान राम की पूजा की जाती है. वहीं, यूपी के बदायूं में रावण के उपासक बड़ी श्रद्धा से रावण की पूजा-अर्चना करते हैं. शहर के साहूकारा मोहल्ले में रावण का प्राचीन मंदिर स्थित है, जहां ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों की शादी में रुकावट आ रही होती है. अगर वे यहां आकर दशहरे के दिन पूजा-अर्चना करते हैं तो जल्द ही उनकी मुराद पूरी होती है.

रावण का मंदिर.
रावण का मंदिर.

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Published : Oct 24, 2020, 2:11 PM IST

बदायूं:असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में 'दशहरा' मनाया जाता है. भगवान राम द्वारा रावण के वध को दशहरे के पर्व के रूप में मनाया जाता है. भारतीय संस्कृति में जहां राम को नायक माना जाता है. वहीं रावण को खलनायक का दर्जा प्राप्त है, लेकिन रावण के महाज्ञानी होने के कारण कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो बड़ी भक्ति से रावण की पूजा करते हैं. बदायूं में भी रावण का एक अलौकिक मंदिर है, जहां रावण की विधिवत पूजा होती है और दशहरे के दिन इस मंदिर में पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है.

जानकारी देते सेवादार.

मंदिर में पूजा करने से होती है जल्द शादी
शहर के साहूकारा मोहल्ले में रावण का प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर में रावण की आदमकद प्रतिमा विराजमान है. इस मंदिर की ख्याति दूर-दराज तक फैली हुई है. इसीलिए दशहरे पर रावण को मानने वाले श्रद्धालु दूर-दूर से यहां आते हैं और रावण की विधिवत पूजा करते हैं. वहीं मंदिर को लेकर एक ऐसा तर्क लगाया जाता है कि जिन लोगों की शादी में रुकावट आ रही होती है. अगर वे यहां आकर दशहरे के दिन पूजा-अर्चना करते हैं तो जल्द ही उनकी मुराद पूरी होती है.

भगवान शिव का भक्त था रावण
रावण की यह प्रतिमा भगवान शिव की तरफ आराधना करते हुए दिखाई गई है. इसके पीछे तर्क यह है कि रावण भगवान शिव के भक्ते थे और भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था.

रावण की होती है पूजा
जानकारों का मानना है कि रावण परम ज्ञानी था. वह जानता था कि सीता माता लक्ष्मी जी की अवतार हैं और इसीलिए रावण ने सीता माता का हरण किया था. इस तर्क को मानने वाले आज भी रावण की पूजा करते हैं.

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देश के विभिन्न प्रांतों में पूजा भले ही अलग-अलग होती हो, लेकिन पूजा देवत्व गुणों की ही होती है. रावण के मंदिर की स्थापना के क्या कारण थे. यह तो कहना मुश्किल है, लेकिन जिस रावण का हर वर्ष असुरी प्रवृत्ति के कारण दहन किया जाता है. उस रावण के उपासक आज भी हैं.

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