बदायूं: जहां सरकार अन्नदाता की आय दोगुना करने के लिए लगातार प्रयासरत है. वहीं नौकरशाहों और माफियाओं के बीच धान खरीद में बड़ा घालमेल चल रहा है. शासन द्वारा किसानों की सहूलियत के लिहाज से लोकल स्तर पर धान खरीद केंद्र तो खोले गये हैं, लेकिन प्रशासनिक मिलीभगत के चलते अन्नदाताओं को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.
उसावां ब्लॉक के मोहम्मदपुर क्षेत्र में लगाये गए नेफेड का क्रय केंद्र कागजों पर चल रहा है. यहां धान की खरीद नहीं की जाती, बल्कि बिचौलियों का धान खरीद कर लक्ष्य पूरा कर दिया जाता है. यहां न तो केंद्र प्रभारी मिले और न ही कोई अन्य कर्मी. खरीद का अंदाजा तो इसी से लगाया जा सकता है कि वहां धान का एक भी दाना बिखरा न मिला. जहां पर प्रतिदिन 200 से 300 कुंटल खरीद की जाती है, वहां एक भी धान का दाना न मिलना यह साबित करता है कि अन्नदाताओं को केंद्र प्रभारी और माफिया मिलकर धोखा कर रहे हैं.
यहां क्रय केंद्रों पर खरीद तो प्रतिदिन की जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत की बात करें तो यहां कोई खरीद नहीं चल रही है. यहां धान की खरीद सिर्फ कागजों में ही सिमटी है. सबसे अहम बात यह है कि जिस क्षेत्र में क्रय केंद्र को स्थापित किया गया है, उस क्रय केंद्र पर गांव के एक भी व्यक्ति ने धान विक्रय नहीं किया है. वहीं दूसरी तरफ नेफेड सेंटर के 1 दिसम्बर तक के ऑनलाइन डेटा की बात करें, तो यहां 6790 कुंटल धान की खरीद हो चुकी है. करीब 95 किसानों की 1 करोड़ 26 लाख 83 हजार 720 रुपये की रकम भी किसानों के खाते में जा चुकी है.
इस क्रय केंद्र पर 1 दिसम्बर तक जिन लोगों से खरीद दर्शाई गई है, उनमें म्याऊं कस्बे के पास के ग्रामीणों के खाते में रकम भेजी गई है. जबकि म्याऊं से क्रय केंद्र की दूरी करीब 30 किलोमीटर है. इसके साथ ही म्याऊं में स्थानीय स्तर पर केंद्र भी संचालित है. लोगों का कहना है केंद्र से सम्बद्ध मिलर के खास लोगों के खातों में फर्जी खरीद दिखा कर शासन की मंशा को धुमिल किया जा रहा है.
एसडीएम दातागंज कुंवर बहादुर सिंह का इस पूरे मामले पर कहना है कि क्रय केंद्र का औचक निरीक्षण करके आवश्यक कार्रवाई की जाएगी. वहीं भारतीय किसान यूनियन के जिला उपाध्यक्ष रामबाबू सिंह ने बताया कि मोहम्मदपुर में दो नेफेड, एग्रो धान क्रय केंद्र एक ही बिल्डिंग में चल रहे हैं. कागजों में धान की खरीद चल रही है. किसान किराए पर धान ट्रॉली में भरकर ले जाता है. जब वहां कोई नहीं मिलता है, तो उसे वापस लौट के आना पड़ता है. ऐसे में प्रशासन को समय-समय पर निरीक्षण करना चाहिए और केंद्र प्रभारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए. सरकार द्वारा 1868 एमएसपी तय किया गया है, लेकिन उसका लाभ किसानों को नहीं मिल पाया रहा है.