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दारा सिंह चौहान का सियासी दांव कहीं पड़ न जाए उल्टा! जानिए पार्टी छोड़ने पर बीजेपी पर क्या होगा असर.. - उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव

समर्थकों के बीच चुनावी मौसम वैज्ञानिक के नाम से प्रसिद्ध पूर्व कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान ने आखिरकार एक बार फिर चुनावी मौसम को भाप पार्टी बदल ली है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब उन्होंने पार्टी छोड़ी है, इससे पहले भी वो ऐसा कर चुके हैं और हर बार सत्ता का सुख भोगा है.

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पार्टी छोड़ने पर बीजेपी पर क्या होगा असर

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Published : Jan 13, 2022, 4:01 PM IST

Updated : Jan 13, 2022, 4:07 PM IST

आजमगढ़ः अपने तीन दशक के राजनीतिक करियर में दारा सिंह चौहान मंत्री की कुर्सी पर भले ही पहली बार बैठे हों, लेकिन वे हमेशा सत्ता के नजदीक रहे. सत्ता के साथ रहने के लिए उन्होंने कभी पार्टी बदलने में गुरेज नहीं की. यही वजह है कि उनके विधानसभा क्षेत्र के मतदाता से लेकर नेता तक उन्हें चुनावी मौसम वैज्ञानिक कहते हैं. माना जाता है कि दारा सिंह चौहान चुनाव से पहले ही हवा का रुख भाप लेते हैं. एक बार फिर उन्होंने चुनावी बयार को समझा और बीजेपी को बाय-बाय कर दिया. लेकिन कहीं इस बार उनका ये दांव उल्टा न पड़े जाए.

माना जा रहा है कि दारा सिंह चौहान एसपी में शामिल होंगे. दारा सिंह चौहान के जाने से बीजेपी को कम से कम मऊ जिले में नुकसान उठाना पड़ सकता है. वजह ये है कि यहां चौहान वोटरों की संख्या काफी अधिक है.

आपको बता दें कि दारा सिंह चौहान मूलरूप से आजमगढ़ के गेलवारा गांव के रहने वाले हैं. इनकी गिनती बीएसपी के संस्थापक सदस्यों में होती है. कहा जाता है कि दारा सिंह राजनीति के ऐसे मझे खिलाड़ी हैं, जो हवा का रूख चुनाव से पहले ही भाप जाते हैं. उनका ये अनुमान अभी तक तो सही होता आया है. लेकिन इस बार फैसला भारी भी पड़ सकता है. दारा सिंह अपने तीन दशक के राजनीतिक करियर में हमेशा सत्ता के साथ रहे हैं. रमाकांत यादव के बाद दारा सिंह चौहान ही ऐसे नेता हैं, जो जिस दल में गए वहां सांसद या विधायक बने.

दारा सिंह चौहान ने राजनीति की शुरूआत में ही अपना कर्मक्षेत्र मऊ के मधुबन क्षेत्र को बनाया. बसपा ने साल 1996 में पहली बार बसपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा था. चार साल का कार्यकाल पूरा होते ही उन्होंने हवा का रूख भाप लिया और सपा में शामिल हो गए. फिर क्या था 2000 में सपा ने भी इन्हें राज्यसभा भेज दिया. साल 2006 में दारा सिंह का राज्यसभा कार्यकाल पूरा हुआ. इसी बीच फिर इन्होंने चुनावी हवा को परखा और वर्ष 2007 के चुनाव से पहले फिर बसपा में शामिल हो गए. यूपी में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और वर्ष 2009 में बसपा ने उन्हें फिर राज्यसभा भेज दिया.

साल 2012 में मायावती यूपी की सत्ता से बाहर हुई और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो उस समय चर्चा थी कि दारा सिंह सपा में जा सकते हैं. लेकिन दारा सिंह के मन में कुछ और था. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में देश में भाजपा की सरकार बनी तो इन्होंने बीजेपी से नदजीकी बढ़ाई. इसके बाद दारा सिंह चौहान सभी को चौकाते हुए 2 फरवरी 2015 को बीजेपी में शामिल हो गए. दारा सिंह चौहान को बीजेपी ने पिछड़ी जाति प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद वर्ष 2017 के चुनाव में मधुबन सीट से जीत हासिल कर दारा सिंह योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बन गए.

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पिछले दो साल से दारा सिंह बीजेपी में हाशिए पर दिख रहे थे. यहां तक कि नवंबर 2021 में गृहमंत्री राज्य विश्वविद्यालय का लोकापर्ण करने के लिए आजमगढ़ आये तो कार्यक्रम में दारा सिंह को आमंत्रित नहीं किया गया. माना जा रहा था कि उपेक्षा से नाराज दारा सिंह सपा में जा सकते हैं. उनकी सपा के लोगों से नजदीकियां भी बढ़ गयी थीं. लेकिन छह दिसंबर को दारा सिंह चौहान बीजेपी की सगड़ी सभा में सीएम योगी के सबसे नजदीक नजर आये थे. उन्होंने न केवल मंच पर सीएम से लंबी गुफ्तगू की बल्कि सभा को संबोधित करते हुए विपक्ष पर जमकर हमला बोला था. उस समय चर्चाओं पर विराम लग गया था.

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ऐसा माना जा रहा था कि अब वे दल बदल नहीं करेंगे. शायद उन्होंने हवा का रुख भाप लिया है. लेकिन दारा सिंह चौहान ने बुधवार को त्यागपत्र देकर सभी को चौका दिया. अब उनका सपा में जाना तय है. दारा सिंह का सपा में जाना बीजेपी के लिए बड़े झटके से कम नहीं होगा.

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Last Updated : Jan 13, 2022, 4:07 PM IST

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