आजमगढ़:1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में जिले के अजमतगढ़ गांव के निवासी दो सगे भाइयों भीखा शाव और गोगा शाव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इन दोनों भाइयों ने अंग्रेजी सेना के विरुद्ध कुंवर सिंह की सेना को प्रश्रय दिया था. इसका खामियाजा इन दोनों भाइयों को काला पानी की सजा के रूप में भुगतना पड़ा था.
शहीद भीखा और गोगा शाव की बलिदान की कहानी. जानें भीखा शाव और गोगा शाव की बलिदान की कहानी
भीखा शाव और गोगा शाव का चीनी बनाने का कारखाना था. इन्होंने 1857 में आजादी की लड़ाई में कुंवर सिंह की सेना को प्रश्रय दिया था. कुंवर सिंह की सेना को राशन देने के साथ ही यहां के स्थानीय कुएं में भी दोनों भाइयों ने इतनी चीनी डलवा दी थी, जिससे पूरे कुएं का पानी मीठा हो गया और कुंवर सिंह की सेना इसी के भरोसे डेढ़ महीने तक अंग्रेजों से लड़ती रही.
युगों-युगों तक याद किया जाएगाभीखा और गोगा का बलिदान
इन दोनों भाइयों के बारे में जब अंग्रेजों को पता चला तो अंग्रेजों ने दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर तरह-तरह की यातनाएं देने के साथ इन दोनों भाइयों को काला पानी की सजा दे दी, जिससे दोनों भाई शहीद हो गये पर शव आज तक नहीं मिले. प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी को पूरे आजमगढ़ के लोग इन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. आजादी की लड़ाई में जिस तरह से इन दोनों भाइयों ने अंग्रेजों की सेना के विरुद्ध कुंवर सिंह का सहयोग किया. निश्चित रूप से यह दोनों भाई आजमगढ़ के इतिहास में युगों-युगों तक याद किए जाएंगे.