आजमगढ़: सावन महीने की पहचान कजरी के गीतों और झूलों से की जाती थी. सखी-सहेलियां कजरी गीत गाती और झूला झूलती थी, लेकिन अब तो किसी को गीतों का इंतजार नहीं है और न ही सावन के झूलों का. आधुनिकीकरण की दौड़ में लोगों की और बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमटकर रह गई है.
अब न कोई कजरी गाता है और न ही सुनता है जो बच्चे पहले झूले के लिए जिद करते थे. अब वह बच्चे झूले के लिए जिद भी नहीं करते बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमट कर रह गई है.