आजमगढ़:सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी आजमगढ़ की धरती पर आए थे. यहां उन्होंने शिब्ली एकेडमी के पुस्तकालय में पहली बार उर्दू में पत्र लिखा और लालटेन की रोशनी में लोगों को संबोधित किया.
शिब्ली एकेडमी के पुस्तकालय में गांधी जी ने उर्दू में लिखा था पत्र
आजमगढ़ जिले में स्थापित शिब्ली एकेडमी ऐसी जगह है जहां पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजेन्द्र प्रसाद, मौलाना अब्दुल कलाम जैसी कई महान हस्तियां आ चुकी हैं. इस एकेडमी का सबसे सुखद क्षण तब था जब यह महात्मा गांधी के चरण पड़े. अंग्रेजों से आजादी के लिए गांधी जी पूरे देश में जगह-जगह जाकर लोगों को लामबंद कर रहे थे. जब सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई तो गांधी जी आजमगढ़ पहुंचे. यहां पहुंच कर उन्होंने लोगों से इस आंदोलन को सफल करने के लिए अपनी भागीदारी निभाने का वादा किया.
गांधी जी को सुनने और देखने के लिए था लोगों में उत्साह
जब महात्मा गांधी आजमगढ़ पहुंचे तो लोगों में एक अलग उत्साह उन्हें देखने और सुनने का था. गांधी जी शिब्ली एकेडमी के अतिथि भवन में रुके. वहीं शाम को लालटेन की रोशनी में लोगों को संबोधित किया. जानकारों के अनुसार बापू के संबोधन के बाद लोगों में गजब का उत्साह था. लोग अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होकर आजादी की लड़ाई में शामिल हुए.
गांधी जी जब शिब्ली एकेडमी में पहुंचे तो वहां उन्होंने उर्दू में एक पत्र लिखा जिसमें यहां के संस्थापक को शुक्रिया करने के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने के लिए निमंत्रण दिया.
यहां राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू सरीखे कई महान हस्तियां यहां आयी हैं. जब यहां 1930 में शाम को मकरीब की नमाज हो रही थी तो गांधी जी का आगमन हुआ था. उन्हें लालटेन की रोशनी में यहां की सब चीजें दिखाई गई थीं. गांधी जी को गुजराती के साथ हिंदी और अंग्रेजी भाषा आती थी. फिर भी उन्होंने उर्दू पढ़ी और उर्दू में ही यह पत्र लिखा जो उस समय उन्होंने कहीं नहीं लिखा था. उनका लिखा पत्र शिब्ली एकेडमी की शोभा बढ़ा रहा है.
नदवी, सीनियर स्कॉलर