अयोध्याः दशकों पहले अयोध्या के राज दरबार के पास खाली ग्राउंड में रामलीला का मंचन शुरू किया गया था. यह आयोजन अयोध्या रियासत की ओर से कराया जाता था, जिसमें सरकार की ओर से अनुदान मिलता था. करीब 50 वर्ष पहले जब रामलीला बंद हो गई तो अयोध्या में मायूसी छा गई थी. बताया जाता है कि उस वक्त अयोध्या रियासत में यहीं एकमात्र रामलीला का मंचन होता था.
लंका दहन की झलक देखने को उमड़ती थी भीड़
इस रामलीला के आयोजक बताते हैं कि उस वक्त यहां का लंका दहन का मंचन देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ती थी. हनुमान जी शिवाले की चोटी पर जाकर लंका दहन करते थे. यह अदृश्य अद्भुत होता था. इसके बाद विजयदशमी के अवसर पर रावण दहन भी मुख्य आयोजन में शामिल था. वर्षों बाद जब इस अनोखे आयोजन पर ग्रहण लगा तो लोगों में मायूसी छा गई. जन भावनाओं को देखते हुए संतों ने एक बैठक की, जिसमें इस रामलीला को संस्थागत रूप देने के लिए एक कमेटी गठित करने का निर्णय लिया. रामलीला के लिए संत तुलसीदास रामलीला कमेटी बनाई गई. इसके अध्यक्ष मणिराम छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास जी अध्यक्ष बने जो राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष भी हैं. कमेटी में शामिल सभी सदस्यों को बाकायदा जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसके बाद यह समिति लगातार हर वर्ष रामलीला कराती रही.
मोदनवाल समाज करता था भव्य आयोजन
रामलीला समाप्त होने के बाद एकादशी तिथि पर भागवताचार्य सदन से राम बारात निकलती थी, जिसकी अगुवाई प्रतीक रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम करते थे. सदन से निकलकर यह राम बारात हनुमानगढ़ी पहुंचती थी. जहां मोदनवाल समाज राम-भरत मिलाप का भव्य आयोजन करता था. वर्षों से इस अनोखे आयोजन का क्रम जारी रहा, लेकिन इस बार भागवतचार्य सदन में रामलीला का मंचन नहीं किया गया. इसके साथ ही विजयदशमी का उत्सव भी नहीं मनाया गया और राम बारात भी नहीं निकाली गई. इसके चलते हनुमानगढ़ी पर मोदनवाल समाज की ओर से होने वाला राम-भरत मिलाप का अनूठा आयोजन देखने को लोगों की आंखें तरस गईं.
भाइयों के बीच प्रेम देखकर आंखें नम हो जाती थीं