लखनऊः बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने 23 जुलाई 2021 को अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन करने का ऐलान किया है. उनके इस घोषणा के बाद सारे राजनीतिक पार्टियों की नजर ब्राह्मण वोट बैंक पर आकर टिक गई है. इसके पहले 2007 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण कार्ड खेल कर मायावती मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो चुकी है. वहीं फार्मूला दोबारा अपना कर वो एक बार फिर से यूपी की सियासत में अपनी धमक दोबारा दिखाने की फिराक में हैं. ब्राह्मण सम्मेलन की घोषणा के बाद सूबे के सभी राजनीतिक दलों के केंद्र बिंदु में ब्राह्मण को जोड़ने का काम तेज हो गया है.
बीएसपी ने की शुरूआत
बहुजन समाज पार्टी ने साल 2007 में जिस तरह से ब्राह्मणों को साथ लेकर सत्ता के शीर्ष कुर्सी पर काबिज होने का काम किया था. ठीक उसी तरह माया ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक खेलने की कोशिश की है. मायावती ने 23 जुलाई को प्रभु श्री राम की नगरी अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन करके ब्राह्मणों को जोड़ने का ऐलान किया है. मायावती के ऐलान के बाद उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण बदले-बदले नजर आएंगे. सभी राजनीतिक दलों के केंद्र बिंदु में ब्राह्मण वर्ग को जोड़ने को लेकर बात होनी शुरु हो चुकी है.
'ब्राह्मण वोटों पर घमासान' बीजेपी सरकार में ब्राह्मण वर्ग की उपेक्षा के लगते रहे हैं आरोप
पिछले कुछ समय से जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार में ब्राह्मणों की नाराजगी और उपेक्षा के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में मायावती की ओर से ब्राह्मणों को जोड़ने की बात कह कर सभी राजनीतिक दलों को मजबूर करने वाली कोशिश नजर आने लगी है. मायावती के बयान के बाद उत्तर प्रदेश के अन्य राजनीतिक दलों की ओर से जिस तरह से पलटवार करते हुए राजनीतिक दलों ने ब्राह्मण वर्ग को साथ लेने की बात कही है. समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में आने वाले समय में सभी राजनीतिक दलों से ब्राह्मणों को लेकर तमाम तरह के प्रयास नजर आएंगे.
13 फीसदी ब्राह्मण वोटबैंक पर है नजर
दरअसल उत्तर प्रदेश में करीब 13 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं और सभी राजनीतिक दलों को ब्राह्मणों का साथ मिलता रहा है. 2007 में मायावती ब्राह्मण दलित की सोशल इंजीनियरिंग के चलते सत्ता की कुर्सी पर काबिज हुईं. इसके बाद 2012 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो ब्राह्मण वर्ग का साथ मिला. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ब्राह्मणों को लुभाने को लेकर विधानसभा में अच्छी भागीदारी दी और इसका फायदा बीजेपी को मिला. लेकिन योगी सरकार पर ब्राह्मण वर्ग का प्रतिनिधित्व मिलने और तमाम स्तरों पर उनकी उपेक्षा के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में जब मायावती ने ब्राह्मण जोड़ो अभियान की शुरुआत करने की बात कही, सारे राजनीतिक दल ब्राह्मण वोटो को साधने में जुट गए.
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पिछले चुनावों में ब्राह्मण विधायकों की स्थिति
2017 में भारतीय जनता पार्टी के 44 ब्राह्मण विधायक बने थे. जबकि 2012 में जब समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला तो उनके भी 21 ब्राह्मण उम्मीदवार विधायक का चुनाव जीते थे. इससे पहले 2007 में जब मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग कर ब्राह्मणों को साधा था. तो उनकी भी पार्टी से 41 ब्राह्मण उम्मीदवार विधायक का चुनाव जीत गए थे.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक रतन मणिलाल कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में ये देखा गया है कि ब्राह्मण वर्ग में असंतोष और नाराजगी है. पिछले सरकारों में जिस तरह से ब्राह्मण वर्ग को प्रतिनिधत्व मिलता रहा है वो इस सरकार में और संगठन के स्तर पर नहीं मिला. इस तरह की शिकायतें समाज के बीच के साथ-साथ सरकार और बीजेपी संगठन के भीतर से भी आती रही हैं. हालांकि ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में इसे साधने की कोशिश बीजेपी, और समाजवादी पार्टी दोनों ने की थी. अब 2007 की ही तरह दोबारा मायावती ने ब्राह्मण कार्ड खेला है, जो उनका एक बड़ा सियासी कदम है. ये एक टर्निंग प्वाइंट भी साबित हो सकता है और मायावती के इस कदम से दूसरे राजनीतिक दल बीजेपी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी ब्राह्मणों को जोड़ने को लेकर रणनीति बनाने पर मजबूर हो सकते हैं.
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