अयोध्या :दीपावली का पर्व 12 नवंबर को पूरे देश में मनाया गया. भगवान राम के लंका पर विजय के बाद उनकी अयोध्या वापसी पर उस दौरान लोगों ने जितना उत्साह दिखाया था, वैसा ही उल्लास रामनगरी में हर साल देखने को मिलता है. रामनगरी में आज भी त्रेता युग की कथा के अनुसार ही रामलला सरकार की पूजा अर्चना के साथ विभिन्न कार्यक्रम किए जाते हैं. इसी कड़ी में दीपोत्सव के बाद अयोध्या में अन्नकूट महोत्सव की भी धूम रही. छोटे-बड़े मिलाकर लगभग 5000 से अधिक मंदिरों में 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया गया. राघव सरकार को भोग लगाने के बाद यह प्रसाद श्रद्धालुओं में वितरित किया गया. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
त्रेता युग में हर अयोध्या वासी ने हाथों से बनाकर परोसे थे व्यंजन :अयोध्या की प्रसिद्ध रसिकपीठ सियाराम किला झुनकी घाट के महंत करुणा निधान शरण ने बताया कि त्रेता युग की कथा के अनुसार जब भगवान राम अर्धांगिनी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए वनवास गए तो राघव सरकार को कंद मूल फल और रुखा-सूखा भोजन ही ग्रहण करने को मिला. 14 वर्ष बीत जाने के बाद लंका विजय कर जब प्रभु श्री राम अयोध्या वापस आए थे तो भावना से भरे अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया. प्रभु श्रीराम का राजतिलक हुआ. अगली कड़ी में अयोध्या वासियों ने यह महसूस किया कि उनके सरकार 14 वर्षों तक वन में भटके हैं, कंदमूल खाते रहे हैं इसलिए प्रत्येक अयोध्यावासी अपने राजा की सेवा में अलग-अलग व्यंजन बनाकर राज दरबार में पहुंच गया. उस समय व्यंजनों की संख्या काफी अधिक हो गई. तब से यह परंपरा रही है कि दीपावली पर्व पर भगवान राम के राजतिलक के बाद अगले दिन उन्हें 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है. यह परंपरा अन्नकूट के रूप में अयोध्या सहित पूरे भारत में कायम है.