अयोध्या: वर्तमान में अयोध्या के नाम से जाना जाने वाला फैजाबाद शहर नवाबी सल्तनत के उस दौर से गुजरा जिस समय यूपी में नवाबों की तूती बोलती थी. नवाबों के ऐशो-आराम और जिंदगी जीने के तरीके को देखकर ब्रिटिश हुकूमत के बड़े से बड़े अधिकारी भी दंग रह जाते थे. अवध के तीसरे नवाब सुजाउद्दौला के दौर में फैजाबाद शहर को एक अजीम पहचान मिली. कई खूबसूरत और ऐतिहासिक इमारतों के निर्माण ने इस शहर को एक अलग पहचान दी.
यहां है सबसे बड़ा गुंबद वाला मकबरा ऐसी ही एक इमारत है बहू बेगम का मकबरा, जिसका विशालकाय गुंबद अपने आप में एक अलग पहचान रखता है. इसकी ऊंचाई करीब 80 फीट बताई जाती है. इस मकबरे की देखरेख करने वाले ट्रस्ट के ट्रस्टी का दावा है कि इस मकबरे का गुंबद एशिया का दूसरा और भारत का सबसे बड़ा गुंबद है. इसके नीचे नवाब सुजाउद्दौला की बेगम उम्मतुजहरा की मजार आज भी मौजूद है. ईटीवी भारत ने इस बेहतरीन इमारत के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारियां इकट्ठा की हैं, जिन्हें जानकर आपको भी हैरानी होगी.
दूर-दूर से गुंबद को देखने आते हैं पर्यटक
1550 ईसवी के दौर में बनना शुरू हुए इस मशहूर मकबरे की पहचान पूर्वांचल के ताजमहल के रूप में भी है. इस बेहद खूबसूरत इमारत की खासियत यह है अयोध्या शहर से कई किलोमीटर दूर से ही इस विशालकाय इमारत के गुंबद को देखा जा सकता है. इस इमारत को देखने आए पर्यटक राजीव तिवारी ने बताया कि यूपी में नवाबी दौर में बनाई गई सबसे बेहतरीन इमारतों में से एक बहू बेगम का मकबरा है. इसे करीब से देखने की तमन्ना थी और जब इसे आकर देखा, तो यह वैसे ही मिली जैसा इसके बारे में किताबों में पढ़ा और बड़े बुजुर्गों से सुना था.
मकबरा देखने पहुंचे पर्यटक. आखिर कैसे बना इतना बड़ा गुंबद
एक और पर्यटक दिव्यांशु शुक्ला ने बताया कि धार्मिक नगरी अयोध्या वैसे ही एक ऐतिहासिक नगरी के रूप में पूरी दुनिया में जानी जाती है, लेकिन मंदिर के अलावा भी इस शहर में कई ऐसी इमारतें हैं, जिन्हें देखने लोग आते हैं. बहू बेगम का मकबरा ऐसी ही इमारतों में से एक है. उन्होंने कहा कि इस मकबरे का विशालकाय गुंबद मैंने अपने जीवन में नहीं देखा था. अपने आप में यह एक बेहद चौंकाने वाली बात है. सन् 1500 से 1600 ईसवी में जब तकनीकी रूप से बड़ी निर्माण इकाइयां और मशीनें नहीं थी, उस दौर में आखिरकार कैसे इतने बड़े मकबरे का और इतनी ऊंचाई पर सामान पहुंचाकर निर्माण कराया गया. यह अपने आप में एक रहस्य है.
मकबरे का गुंबद एशिया का दूसरा सबसे बड़ा गुंबद गुंबद का निर्माण अवध के तीसरे नवाब ने कराया बहू बेगम मकबरा ट्रस्ट के ट्रस्टी अशफाक हुसैन जिया का कहना है कि इस मकबरे का गुंबद (डोम) एशिया का दूसरा सबसे बड़ा और भारत का सबसे बड़ा गुंबद है. इसका निर्माण अवध के तीसरे नवाब सुजाउद्दौला के सिपहसालार दराब अली खां ने करवाया था. जो सन् 1805 ईसवी में बनकर तैयार हुआ था. तब से लेकर आज तक करीब 205 साल का लंबा वक्त बीत गया, यह विशालकाय गुंबद आज भी उसी मजबूती के साथ खड़ा है. अशफाक हुसैन जिया ने बताया कि जब इस गुंबद का निर्माण हो रहा था, तो एक ऊंचा मिट्टी का रैंप बनाकर हाथी और घोड़े के जरिए ऊंचाई तक सामान पहुंचाया गया था. इसके बाद इस अजीम इमारत को तामीर किया जा सका था. उन्होंने बताया कि आज भी इमारत नवाबी सल्तनत और हुकूमत की पहचान के रूप में मौजूद है.
नवाब सुजाउद्दौला की बेगम उम्मतुजहरा मकबरे का गुंबद किसी अजूबे से कम नहीं फैजाबाद में मौजूद इस मशहूर और विशालकाय मकबरे का गुंबद यकीनन अपने आप में किसी अजूबे से कम नहीं है. सबसे बड़ा रहस्य यही है कि आखिरकार जिस दौर में भारत देश तकनीकी रूप से उतना संपन्न नहीं था, उस दौर में इतने विशालकाय मकबरे का निर्माण कैसे हो सका.