अयोध्या: चिरकाल से कल-कल बहती सरयू नदी आज राम मंदिर का भूमि पूजन कार्यक्रम पूरा होने पर काफी खुश है, वहीं 30 साल पहले राम मंदिर के लिए जान की परवाह न करने वाले शहीद राम और शरद कोठारी के लिए अश्रु भी बहा रही है. जब-जब भगवान राम के मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन का जिक्र आएगा, तब-तब इसके दो नायक कोठारी बंधुओं का भी जिक्र होगा. बंगाल के इन दोनों नायकों ने अपने आराध्य देव भगवान राम के लिए प्राण न्योछावर कर दिए. सबसे खास बात यह है कि बंगाल के दोनों शहीद कोठारी बंधुओं का 4 नवंबर 1990 को सरयू तट पर ही अंतिम संस्कार किया गया. ऐसे में अपने आराध्य के लिए शहीद होकर ये दोनों बंधु आज भी अयोध्या की पवित्र धरा के इतिहास में दर्ज हैं.
प. बंगाल से कारसेवा करने पहुंचे थे अयोध्या
30 साल पहले आराध्य देव राम की भक्ति का राम और शरद कोठारी पर ऐसा खुमार चढ़ा कि दोनों भाई पश्चिम बंगाल से कार सेवा करने अयोध्या आ पहुंचे. अयोध्या तक पहुंचने में उन्हें तमाम बाधाओं का सामना करना पड़ा. 22 अक्टूबर 1990 को दोनों भाई भगवान राम की नगरी अयोध्या के लिए रवाना हुए. उत्तर प्रदेश के उस समय मुख्यमंत्री थे-मुलायम सिंह यादव.
मुलायम सरकार ने साफ तौर पर ऐलान किया था कि कोई भी कारसेवक अयोध्या की तरफ नहीं जाएगा. सभी को जगह-जगह पर रोका जा रहा था, लेकिन इन दोनों भाइयों पर भगवान राम की भक्ति के साथ ही राष्ट्रभक्ति इस कदर सवार थी कि सरकार का कोई भी फैसला इन्हें अयोध्या आने से रोक नहीं सका. दोनों भाई अपने एक मित्र के साथ 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंच गए. इसके 3 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन हनुमान गढ़ी के पास इकट्ठे हुए हजारों कार सेवकों में ये दोनों भाई भी शामिल थे.
कारसेवकों को रोक पाने में नाकाम रही पीएसी
30 अक्टूबर को अयोध्या के विवादित परिसर में कदम रखने वालों में राम और शरद कोठारी भी शामिल थे जो कि उन कारसेवकों में सबसे आगे थे. अयोध्या में कर्फ्यू लगा हुआ था. 30 हजार से ज्यादा पीएसी के जवान वहां पर तैनात थे, लेकिन कारसेवकों के जत्थे को रोक पाने में नाकाम रहे. राम और शरद कोठारी इतने उत्साहित थे कि उन्होंने लाखों कारसेवकों को पीछे छोड़ते हुए बाबरी मस्जिद के गुंबद पर चढ़कर भगवा फहरा दिया. इससे कारसेवकों में हड़कंप मच गया. इतना ही नहीं, भगवा फहराकर दोनों मस्जिद से नीचे भी उतर आए, लेकिन इसके बाद हुई गोलीबारी में दोनों भाई शहीद हो गए.