अयोध्या:गणेश पूजन के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर भूमि पूजन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. मुख्य अनुष्ठान से पहले हनुमानगढ़ी पर निशान पूजन और रामर्चा पूजा बेहद खास है. भगवान राम की जन्मस्थान पर सुबह 9 बजे से शुरू हो रही रामर्चा पूजा 4 घंटे चलेगी. वैदिक रीति-रिवाज के अनुसार 6 पुजारी इस अनुष्ठान को कराएंगे.
अयोध्या के संत रामानंद दास से खास बातचीत. राम मंदिर निर्माण के लिए तीन दिन तक चलने वाले भूमि पूजन के अनुष्ठान का श्री गणेश हो चुका है. दूसरे दिन अनुष्ठान हनुमानगढ़ी पर निशान पूजन के साथ शुरू हो रहा है. इसके साथ भगवान राम के जन्मस्थान पर करीब चार घंटे तक रामर्चा पूजा की जाएगी. भूमि पूजन के अनुष्ठान में यह प्रमुख पूजा का कार्यक्रम है. इसके जरिए भगवान राम के साथ सभी देवी-देवताओं का पूजन-अर्चन किया जाएगा. रामर्चा पूजा इसलिए भी खास है, क्योंकि इसे अयोध्या में ही प्रकट किया गया था.
ऐसे में ईटीवी भारत ने अनुष्ठान कराने वाले अयोध्या के संत रामानंद दास से बातचीत की. उन्होंने बताया कि अयोध्या के प्रमुख संत रहे श्रीराम वल्लभाशरण जी महाराज ने अयोध्या में रामर्चा पूजा को प्रकट किया. श्रीराम वल्लभाशरण जी महाराज अयोध्या के प्रमुख श्री राम वल्लभाकुंज के प्रतिष्ठापक रहे. रामर्चा पूजा प्रकट करने वाले संत के शिष्य के शिष्य रामानंद दास रामर्चा पूजा का अनुष्ठान संपन्न करा रहे हैं.
रामलला के मूल गर्भगृह पर रामर्चा पूजा कराने वाले संत रामानंद दास अयोध्या के मंदिर श्रीराम कुंज कथा मंडप के महंत हैं. उन्होंने बताया कि 100 वर्ष पहले अयोध्या में रामर्चा पूजा शुरू हुई थी. रामर्चा पूजा अयोध्या के प्रमुख संत श्री राम वल्लभाशरण जी महाराज ने प्रकट किया था. आचार्य रामानंद दास ने बताया कि रामर्चा पूजा में भगवान राम की त्रिपाद विभूति रूप में तीन आवरण की पूजा होती है. समस्त देवताओं के अंग का आह्वान किया जाता है. उनका षोड्शोपचार से पूजा होती है. इसके बाद अंगी भगवान की विधिवत पूजा होती है.
इसमें विशेष कर भगवान श्रीराम के माता-पिता चक्रवर्ती राजा दशरथ, कौशल्या, कैकेई, सुमित्रा, हनुमान, सुग्रीव और इसके साथ सभी देवी-देवताओं का पूजन-अर्चन किया जाता है. रामर्चा पूजा के बाद राजाओं को साक्षात भगवान प्रकट हुए थे. दर्शन आचार्य रामदास कहते हैं कि शास्त्रों में पूजा-पाठ की पद्धति पुरानी है, लेकिन इसे सर्वजन सुलभ बनाने के लिए श्री राम वल्लभाकुंज के प्रतिष्ठापक व अयोध्या के प्रमुख संत श्रीराम वल्लभाशरण जी महाराज ने इस विशेष पूजा को अपने तप के प्रभाव से प्रकट किया था. रामर्चा पूजा के जरिए उन्होंने उस समय अनेक राजाओं ने महाराज श्री के शिष्य बनकर इस रामर्चा पूजन के जरिए भगवान के साथ साक्षात्कार किया. इस अनुष्ठान के प्रभाव से इसका प्रसार पूरे विश्व में हो चुका है. वर्तमान में देश के कोने-कोने में रामर्चा पूजा हो रही है.
हनुमानगढ़ी के निशान पूजन का महत्व
भगवान राम के जन्म स्थान पर रामर्चा पूजा से ठीक पहले हनुमानगढ़ी में निशान पूजन होना है. इस पूजन में हनुमान भजन का पूजन किया जाता है. माना जाता है कि अयोध्या के रक्षक और कलयुग के देवता हनुमान जी की पूजा से कार्य में सिद्धि मिलती है. हनुमानगढ़ी बजरंगबली का प्रथम निवास माना जाता है. राम दरबार के आगे भी कलयुग के देवता हनुमान विराजमान हैं. माना जाता है कि भगवान राम के बाद कलयुग में अयोध्या के राजा हनुमान जी हैं. हनुमानगढ़ी से पूरी अयोध्या का दर्शन किया जा सकता है. मान्यता है कि बजरंगबली अपने स्थान से पूरी अयोध्या की रखवाली करते हैं. ऐसे में किसी भी कार्य की शुरुआत करने से पहले अयोध्या में निशान पूजन यानी हनुमान ध्वजा पूजन का विशेष महत्व है.