अयोध्या: हिंदू धर्म की रक्षा के लिए करीब 500 वर्ष पूर्व नासिक कुंभ में जयपुर राजघराने के राजकुमार ने अपनी संपत्ति दान देकर जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज से दीक्षा ली थी. कालांतर में इनका नाम स्वामी बाला आनंद रखा गया. स्वामी बाला आनंद ने श्री पंचरामानंदी निर्वाणी आणि, निर्मोही और दिगंबर अखाड़े की स्थापना की.
निर्वाणी (आणि अर्थात समूह) अखाड़ा का मुख्य केंद्र हनुमानगढ़ी अयोध्या है. निर्वाणी आणि अखाड़े में निर्वाणी अखाड़ा, खाकी अखाड़ा, हरिव्यासी अखाड़ा, संतोषी अखाड़ा, निरावलंबी अखाड़ा, हरिव्यासी निरावलबी अखाड़ा यानी कुल 7 अखाड़े शामिल हैं. निर्वाणी आणि अखाड़े की बैठक वृंदावन और चित्रकूट में भी है. इस अखाड़े के श्रीमहंत का चुनाव 12 वर्ष पर होता है. वर्तमान में निर्वाणी आणि अखाड़े के श्रीमहंत धर्मदास हैं, जबकि निर्वाणी आणि अखाड़े के महासचिव महंत गौरी शंकर दास हैं.
निर्वाणी आणि अखाड़े का मुख्य केंद्र है हनुमानगढ़ी
निर्वाणी आणि अखाड़े का मुख्य केंद्र हनुमानगढ़ी है. यह अयोध्या में स्थित है. इसका संविधान संस्कृत भाषा में 1825 में लिखा गया. इसका हिंदी रूपांतरण 1963 में हुआ. हनुमानगढ़ी अखाड़ा लोकतंत्र का बहुत बड़ा हिमायती है. अखाड़े में चार अलग-अलग पट्टियां हैं. इनके नाम सागरिया, उज्जैनिया, हरिद्वारी और बसंतिया हैं.
हनुमानगढ़ी मंदिर की गद्दी पर वर्तमान में महंत प्रेमदास महाराज विराजमान हैं. इससे पहले इस पद को महंत बलराम दास, महंत जयकरण दास, महंत सीताराम दास, महंत दीनबंधु दास, महंत मथुरा दास, महंत रमेश दास सुशोभित कर चुके हैं .
हर 12 वर्ष पर नागापना समारोह
हनुमानगढ़ी में हर 12 वर्ष पर नागापना समारोह होता है. इसमें धर्म प्रचार का संकल्प लेकर नए सदस्यों को साधु की दीक्षा दी जाती है. इन्हें 16 दिन तक यात्री के रूप में सेवा करनी होती है. इसके बाद वे मुरेठिया के रूप में सेवा करते हैं. 16 दिन बाद नए सदस्यों का नाम मंदिर के रजिस्टर में दर्ज होता है. इसके बाद इन्हें हुड़दंगा का नाम दिया जाता है. ये खुद शिक्षा ग्रहण करने के साथ संतों को भोजन और प्रसाद वितरित करने के साथ ही अतिथियों की सेवा करते हैं.