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गुरु पूर्णिमा पर अयोध्या के संतों ने शिष्यों के लिए की मंगलकामनाएं

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Published : Jul 6, 2020, 9:47 AM IST

गुरु शिष्य परंपरा के अनोखे पर्व गुरु पूर्णिमा पर राम नगरी में सरयू नदी के घाटों पर सन्नाटा रहा. प्रशासन की पाबंदी और संतो महंतों की अपील पर लोगों ने घर से ही पूजा अर्चना की. वहीं अयोध्या के संतों ने अपने शिष्यों को वैश्विक संकट से उबरने की कामना की.

आचार्य सत्येंद्र दास
आचार्य सत्येंद्र दास

अयोध्या: मठ-मंदिरों की नगरी अयोध्या में गुरु शिष्य परंपरा का अनूठा संगम गुरु पूर्णिमा को देखने को मिलता है. इस बार वैश्विक महामारी कोरोना के चलते इस अनूठे आयोजन पर ग्रहण लग गया. सरयू के घाटों पर संभावित भीड़ के मद्देनजर प्रशासन ने भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किए थे. राम नगरी में श्रद्धालुओं का प्रवेश रोकने के लिए जनपद की सीमा सील कर दी गई थी. दिनभर जनपद की सीमा में बाहर से प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं पर प्रशासन की नजर रही. वहीं अयोध्या के मठ मंदिरों में बैठे संत-महंत अपने शिष्यों को मानसिक पूजा करने की सलाह दी.

गुरुजनों ने दिया आशीर्वाद.

गुरु शिष्य का संबंध शाश्वत
रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का कहना है कि गुरु और शिष्य का संबंध शाश्वत है. गुरु व्यक्ति की आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का काम करता है. गुरु पूर्णिमा गुरु और शिष्य के बीच संबंधों का गवाह है. हर वर्ष गुरु पूर्णिमा के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु अयोध्या के मठ मंदिरों में प्रवेश करते हैं और वह अपने गुरु संतो महंतों से आशीर्वाद लेते हैं. लेकिन इस बार वैश्विक महामारी के चलते वे अयोध्या नहीं पहुंच सके हैं.

इंटरनेट के जरिए संतो ने शिष्यों को दिया आशीर्वाद
श्री राम वल्लभा कुंज के अधिकारी संत राजकुमार दास का कहना है कि गुरु शिष्य के अनूठे पर्व गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है. वैश्विक महामारी के चलते इस बार राम नगरी में संतो से नहीं मिल सके लेकिन अपने गुरुओं से ऑनलाइन जुड़े. दिन भर शिष्यों ने इंटरनेट के माध्यम से अपने गुरु से आशीर्वाद लिया. गुरु पूर्णिमा के दिन श्री राम वल्लभा कुंज के अधिकारी संत राजकुमार दास ने ईश्वर से विश्व को कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने की कामना की.

कोरोना मुक्ति अभियान में करें सहयोग
वहीं दशरथ महल बड़ा स्थान के महंत स्वामी देवेंद्राचार्य ने अपने शिष्यों के लिए मंगल कामना की. उन्होंने कहा कि वैश्विक महामारी से देश को मुक्ति दिलाने के लिए लोगों को शासन और प्रशासन के निर्देशों का अनुपालन करना आवश्यक है. इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन अपने शिष्यों के लिए मंगल कामना करते हैं और उनसे आशा करते हैं कि वह विश्व को पूर्ण संकट से मुक्ति दिलाने के अभियान में अपना पूरा सहयोग दें.

श्रीधाम मठ के महंत स्वामी राघवाचार्य ने गुरु पूर्णिमा का महत्व बताया उन्होंने कहा कि शिष्य अपने गुरु में महर्षि वेदव्यास के विचारों को देखता है. गुरु शिष्य के संबंधों को गुरु पूर्णिमा का पर्व प्रदान करता है.

गुरु पूर्णिमा का महत्व
सनातन धर्म में आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि यानी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है. सनातन धर्मी इसे पर्व के रूप में मनाते हैं. इस दिन शिष्य अपने गुरु का आभार व्यक्त करते हैं. इस पर्व से जुड़ी कई मान्यताएं इसे विशेष बनाती हैं. माना जाता है कि पहली बार इसी दिन आदियोगी भगवान शिव ने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान देकर स्वयं को आदि गुरु के रूप में स्थापित किया था.

महर्षि वेद व्यास का हुआ था जन्म
यह भी मान्यता है कि महर्षि वेद व्यास का जन्म भी इसी दिन हुआ था. जिन्होंने चारों वेदों और महाभारत की रचना की. उन्हें आदिगुरु भी कहा जाता है. उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से जाना जाता है. इसी दिन महर्षि व्यास ने शिष्यों एवं मुनियों को सबसे पहले श्रीमद भागवत् पुराण का ज्ञान दिया और गुरु पूजा की परंपरा आरंभ की. यह भी माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने इस शुभ दिन पर अपना पहला उपदेश दिया था. इसलिए इस तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन गुरु पूजा का विधान है. गुरु पूर्णिमा से ही वर्षा ऋतु का आरंभ हो जाता है. गुरु पूर्णिमा के दिन से चार महीने तक साधु-संत एक ही स्थान पर शिक्षा और समाज के बीच ज्ञान की गंगा प्रवाहित करते हैं.

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