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Published : Feb 21, 2021, 8:47 PM IST

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धर्म की लड़ाई में एकता की मिसाल है ये दरगाह, सभी धर्मों के लोगों की है खानकाह

अयोध्या में मंदिर-मस्जिद लड़ाई की तस्वीर ने यहां की हिंदू-मूस्लिम एकता की तस्वीर को धूमिल कर दिया. इस मंदिर-मस्जिद की लड़ाई ने हमें यहां की एकता से दूर रखा. लेकिन अगर आपको यहां की हिंदू मुस्लिम भाईचारे की सच्चाई देखनी हो तो एक बार आपको यहां कि गलियों से होते हुए इस दरगाह पर जरूर जाना चाहिए. जहां हिंदू हों या मुस्लिम सजदें के लिए सबका सर झुकता है. पेश है भाईचारे की ये खास रिपोर्ट...

एकता की एक तस्वीर ऐसी भी
एकता की एक तस्वीर ऐसी भी

अयोध्या: सदियों से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जन्म स्थली के रूप में पूरी दुनिया में जानी जाने वाली धार्मिक नगरी अयोध्या सिर्फ राम लला की जन्मभूमि के लिए नहीं प्रसिद्ध है. बल्कि, हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के लिए भी पहचानी जाती है. यह बात अलग है कि मंदिर और मस्जिद के मुकदमे को लेकर इस शहर की पहचान अधिक रही है. लेकिन, असल अयोध्या की तस्वीर आपको देखनी है तो अयोध्या की गलियों में आपको घूमना पड़ेगा. ऐसी ही एक गली जाती है एक ऐसी दरगाह तक जो चारों तरफ से मंदिरों से घिरी है, लेकिन मंदिरों में बजने वाली घंटियों की आवाज ने दरगाह पर जियारत करने वालों की इबादत में कभी कोई खलल नहीं डाला. हर गुरुवार को इस दरगाह पर मुस्लिम जायरीनों के साथ ही हिंदू भाई-बहन भी पहुंचते हैं. ये सभी अपनी दुख तकलीफ को बताने हजरत मोहम्मद इब्राहिम शाह रहमतुल्लाह अलैह के आस्ताने पर आते हैं. सदियों से यह मजार हिंदू-मुस्लिम के बीच एकता और प्रेम सौहार्द की मिसाल बनी हुई है.

सजदें में झुकते सर
दोनों समुदाय के लोग झुकाते हैं माथा

अयोध्या की इस मशहूर दरगाह के खादिम हाफिज मोहम्मद ओवैस रजा कादरी बताते हैं कि यह दरगाह ताशकंद के बादशाह की है. उनके वालिद के इंतकाल के बाद उन्हें ताशकंद की गद्दी मिली. पहले से ही अल्लाह की राह पर चलने वाले हजरत मोहम्मद इब्राहिम शाह रहमतुल्लाह अलेह लोगों के बीच प्यार मोहब्बत का पैगाम बांटते हुए ताशकंद से अयोध्या की पाकीजा धरती तक पहुंच गए. इसके बाद यहीं के होकर रह गए. अयोध्या के साधु-संतों और आम लोगों के बीच उन्होंने अपनी जिंदगी गुजारी और उनके इंतकाल के बाद उनकी मजार पर सजदा करने वाले लोगों में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग शामिल हैं.

एकता की दरगाह
हिंदू समुदाय के लोग रोज करते हैं पूजाइस प्रसिद्ध दरगाह से 500 मीटर की दूरी पर पवित्र सरयू नदी का प्रवाहित हो रही है. यह दरगाह जिस स्थान पर है, वह पुरानी अयोध्या के रूप में आज स्वर्गद्वार के नाम से जानी जाती है. इस पूरे इलाके में छोटे-बड़े मिलाकर 50 से अधिक मंदिर हैं. इनके बीच यह दरगाह घिरी हुई है. बावजूद इसके कभी भी मंदिरों में होने वाले भजन कीर्तन और घंटों की आवाज से दरगाह पर जियारत करने आने वाले जायरीनों की इबादत में खलल नहीं पड़ा. दरगाह के खादिम मोहम्मद ओवैस रजा कादरी बताते हैं कि बाबा के आस्ताने से इलाके के लोगों को इतनी मोहब्बत है कि रोजाना पूजा-पाठ और आरती करने के बाद हिंदू समुदाय के लोग भी यहां सजदा करने आते हैं.
सभी लोग मांगते हैं दुआ
दरगाह पर आने वालों में हिन्दू और मुस्लिम की तादात बराबर

हजरत मोहम्मद इब्राहिम शाह रहमतुल्लाह अलैह कब इस पाकीजा धरती पर आए, इसका सही सही प्रमाण तो नहीं मिला. लेकिन, इस मजार पर जियारत करते हुए यहां के लोगों को एक सदी से ज्यादा हो चुकी है. लोग आज भी उतनी ही आस्था और श्रद्धा के साथ यहां पर अपनी अरदास लेकर आते हैं. दरगाह पर पहुंचे शैलेंद्र मणि पांडे बताते हैं कि बाबा से इलाके के लोगों को इतनी मोहब्बत है कि हर साल होने वाले उर्स में लाखों श्रद्धालु इस दरगाह पर अपनी बात रखने आते हैं. सन 92 में अयोध्या में हुए दंगे के दौरान कुछ लोगों ने माहौल खराब करने की कोशिश की थी, लेकिन इस मुबारक दरगाह पर कोई आंच नहीं आई. पेशे से डॉक्टर संतोष पांडे रोजाना सरयू में स्नान करने के बाद नागेश्वरनाथ में भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं. इसके बाद इस मजार पर जियारत करने आते हैं. उन्होंने बताया कि उनकी हर मुराद इस मजार पर आकर पूरी हुई है. इस वजह से उनका विश्वास बढ़ा है और वह दर्शन पूजन करने के लिए आते हैं.


भाईचारे की मिसाल है दरगाह

इस पवित्र मजार के बारे में मान्यता है कि स्थानीय लोग अपने कारोबार को शुरू करने से पहले अपनी दुकान की चाबी लाकर दरगाह में रख देते थे. इसके बाद यहां पर अपनी अरदास लगाकर कारोबार को शुरू करते हैं. इस परंपरा को आज भी लोग निभाते हैं. आज भी हजरत मोहम्मद इब्राहिम शाह रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह अयोध्या में कौमी एकता की मिसाल बनी हुई हैं. यहां हिंदू और मुस्लिम एक साथ बैठकर अपनी-अपनी पूजा पद्धति से जियारत और प्रार्थना करते हैं.

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