अयोध्या: स्वर्गद्वार स्थित चंद्रजी मंदिर का पावन वैभव अति विशिष्ट है. अयोध्या के विभिन्न कोणों पर स्थित सप्त हरि में चंद्रहरि को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. यह मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही मंदिर के परिसर में स्थित मुख्य गर्भगृह में विराजमान काले कसौटी के एक ही पत्थर में 11 मूर्तियां विराजित हैं. ये मूर्तियां अति महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. माना जाता है इस मंदिर में दर्शन-पूजन करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं और नित्य दर्शन से बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है.
चंद्रहरि को 16 हरियों में चौथा स्थान प्राप्त
अयोध्या में प्राचीन काल में हरि अर्थात भगवान विष्णु के 16 मंदिर अति प्रसिद्ध मंदिर थे. कालांतर में धर्महरि, गुप्त हरि, पुण्यहरि, विल्वहरि, चक्रहरि और चंद्रहरि मंदिर मौजूद हैं. इनमें चंद्रहरि को 16 हरियों में चौथा स्थान प्राप्त है. इस मंदिर में भी कुल 5 मंदिर हैं. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में चंद्रहरि भगवान विराजमान हैं, जबकि उसके दाहिने ओर मंदिर में भगवान राधा-कृष्ण, बाईं ओर द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर है. द्वादश ज्योतिर्लिंग एक विशाल अर्घ्य के ऊपर है और वह भी मूर्ति में साक्षात ओमकार का दर्शन कराता है.
मंदिर के पीछे प्राचीन कूप
मंदिर के ठीक पीछे एक अत्यंत प्राचीन कूप है. इसके जल के स्नान से चर्म रोग ठीक होते हैं, लेकिन मुगल काल में इस मंदिर की प्रतिष्ठा और महत्ता के कारण लगने वाले मेले और जुटने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए इसे बंद करवा दिया गया. वर्तमान में कूप के ऊपर लोहे का मोटा चद्दर रखकर उसे बंद किया गया है.
मंदिर का वार्षिकोत्सव ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है. मंदिर में आंडाल गोदांबा महोत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसमें एक महीने तक प्रतिदिन खीर और खिचड़ी से भगवान की सेवा की जाती है. इसका प्रसाद सैकड़ों लोगों में वितरित किया जाता है. 14 जनवरी को समापन के दिन भव्य भंडारा और संत सेवा होती है.