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चंद्रहरि मंदिर की एक ही शिला में विराजमान हैं 11 देवविग्रह

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Published : Dec 13, 2020, 7:12 PM IST

धार्मिक नगरी अयोध्या संस्कृति और परंपराओं का शहर है. यहां पर कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं, जिन्हें अपने आप में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. ऐसा ही एक मंदिर है चंद्रहरि मंदिर. इसके बारे में जानने के लिए देखिये खास रिपोर्ट...

स्पेशल रिपोर्ट.
स्पेशल रिपोर्ट.

अयोध्या: स्वर्गद्वार स्थित चंद्रजी मंदिर का पावन वैभव अति विशिष्ट है. अयोध्या के विभिन्न कोणों पर स्थित सप्त हरि में चंद्रहरि को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. यह मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही मंदिर के परिसर में स्थित मुख्य गर्भगृह में विराजमान काले कसौटी के एक ही पत्थर में 11 मूर्तियां विराजित हैं. ये मूर्तियां अति महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. माना जाता है इस मंदिर में दर्शन-पूजन करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं और नित्य दर्शन से बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है.

स्पेशल रिपोर्ट.

चंद्रहरि को 16 हरियों में चौथा स्थान प्राप्त
अयोध्या में प्राचीन काल में हरि अर्थात भगवान विष्णु के 16 मंदिर अति प्रसिद्ध मंदिर थे. कालांतर में धर्महरि, गुप्त हरि, पुण्यहरि, विल्वहरि, चक्रहरि और चंद्रहरि मंदिर मौजूद हैं. इनमें चंद्रहरि को 16 हरियों में चौथा स्थान प्राप्त है. इस मंदिर में भी कुल 5 मंदिर हैं. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में चंद्रहरि भगवान विराजमान हैं, जबकि उसके दाहिने ओर मंदिर में भगवान राधा-कृष्ण, बाईं ओर द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर है. द्वादश ज्योतिर्लिंग एक विशाल अर्घ्य के ऊपर है और वह भी मूर्ति में साक्षात ओमकार का दर्शन कराता है.

मंदिर के पीछे प्राचीन कूप
मंदिर के ठीक पीछे एक अत्यंत प्राचीन कूप है. इसके जल के स्नान से चर्म रोग ठीक होते हैं, लेकिन मुगल काल में इस मंदिर की प्रतिष्ठा और महत्ता के कारण लगने वाले मेले और जुटने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए इसे बंद करवा दिया गया. वर्तमान में कूप के ऊपर लोहे का मोटा चद्दर रखकर उसे बंद किया गया है.

मंदिर का वार्षिकोत्सव ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है. मंदिर में आंडाल गोदांबा महोत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसमें एक महीने तक प्रतिदिन खीर और खिचड़ी से भगवान की सेवा की जाती है. इसका प्रसाद सैकड़ों लोगों में वितरित किया जाता है. 14 जनवरी को समापन के दिन भव्य भंडारा और संत सेवा होती है.

मंदिर की परंपरा और पूजन पद्धति आगम है
मंदिर परिसर में गोदांबा जी का मंदिर भी निर्माणाधीन है. गोदांबा जी साक्षात लक्ष्मी जी ही हैं, जो भगवान रंगनाथ की पटरानी हैं और भगवान रंगनाथ अयोध्या के कुलदेवता हैं. इस नाते गोदांबा जी अयोध्या की कुलदेवी हुईं. मंदिर की परंपरा और पूजन पद्धति आगम है और यहां पर निरंतर पूजन स्त्रोत का पाठ आदि चलता रहता है.

मान्यता है कि चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने चंद्रमा को आशीर्वाद दिया कि वे जहां विराजे, वहीं चंद्रहरि मंदिर होगा. मंदिर के गर्भगृह में एक काले कसौटी के पत्थर में ही भगवान राम गरुड़ पर विराजमान हैं. जिनके साथ किशोरीजी, लक्ष्मणजी, भरतजी, नल, नील अंगद, जामवंत, हनुमान और गरुण विराजमान हैं.

इस मंदिर का है धार्मिक महत्व
मंदिर के महंत और चंद्रहरि ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी कृष्णकांत आचार्य कहते हैं कि चंद्रमा द्वारा पूजित हरि अर्थात नारायण ही चंद्रजी महादेव हैं. उन्होंने बताया कि यह मंदिर अत्यंत प्राचीन एवं धार्मिक महत्व रखता है. मंदिर के ठीक सामने यहां वर्तमान में राम की पैड़ी है, वहां सरयू की धारा प्रवाहित होती थी और त्रेता में यहां चंदन वन था.

चंद्रमा द्वारा उपासना के बाद इसी वन में नारायणजी ने चंद्रमा को दर्शन दिया था. संत श्रीनाथ प्रपन्नाचार्य करते हैं कि वैसे तो अयोध्या का कण-कण सिद्धि की खान है, लेकिन स्वर्गद्वार तीर्थ अत्यंत महत्व का है और उसमें भी चंद्रहरि में हरि और हर दोनों के दर्शन होते हैं.

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