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एक मंदिर ऐसा, जिसकी कभी न डाली जा सकी छत

औरैया में सेहुद गांव के टीले पर धौरा नाग मंदिर स्थित है. इस मंदिर में छत नहीं है. मंदिर में छत ना होना जितनी हैरान करने वाली बात है इसकी सच्चाई भी उतनी ही भयानक है. हालांकि यह स्टोरी मान्यताओं पर आधारित है.

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Published : Oct 29, 2020, 10:58 PM IST

nag mandir in auraiya
औरैया में नाग मंदिर

औरैया: देश को सोने की चिड़िया के साथ ही चमत्कारों का विदेश कहा जाता है. रामायण और महाभारत काल से लेकर इस आधुनिक काल में यहां तरह-तरह की रहस्यमई घटनाएं आज भी घटित होती रहती हैं. यही कारण है कि यहां मौजूद मंदिर, शिवालय लोगों में आस्था के साथ-साथ चर्चा का विषय बने हुए हैं. औरैया जिले के दिबियापुर के पास स्थित सेहुद गांव के टीले पर बने धौरा नाग मंदिर स्थित है. नाग देवता का यह अनोखा मंदिर औरैया समेत आस-पास के जनपदों में काफी प्रसिद्ध है. इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि जिस किसी ने इस मंदिर पर छत डालने की कोशिश की उसकी मौत हुई या उसे बड़े परेशानियों का सामना करना पड़ा है.

हैरान करने वाली है मंदिर की सच्चाई

क्या है मान्यता
धौरा नाग मंदिर मंदिर में आज तक छत नहीं डाली जा सकी है. मंदिर में मौजूद देवी देवताओं की खंडित मूर्तियों की पूजा की जाती है. लोगों की मान्यता है कि साक्षात नाग देवता मंदिर परिसर में बात करते हैं और वह यदा-कदा लोगों को दर्शन भी देते रहते हैं. मंदिर में छत ना होना जितनी हैरान करने वाली बात है इसकी सच्चाई भी उतनी ही भयानक है. कहते हैं मंदिर में जिसने भी छत डलवाने की कोशिश वो इसमें असफल रहे. छत डलवाने वाले की मौत या उसका बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है. लोगों का मानना है कि गांव के ही एक इंजीनियर ने नाग मंदिर में छत डलवाने की कोशिश की, जिसके बाद उनके घर में दो लोगों की आकस्मिक मौत हो गई. छत तो दूर इस मंदिर से कोई सामान तक अपने साथ नहीं ले जा सकता है.

मोहम्मद गजनबी ने खंडित करवाई थी मूर्तियां

मंदिर की प्राचीनता के साथ यहां घटने वाली घटनाएं भी दिल दहलाने वाली हैं. ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर में सदियों पुरानी मूर्तियां पड़ी हैं जो 11 वीं सदी में मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के समय मंदिरों के तोड़फोड़ के सच को बयां करती है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह मंदिर कितना पुराना है.

नागपंचमी के दिन गांव में लगता है मेला
धौरा नाग मंदिर की सिर्फ यही बखूबी इसे अन्य मंदिरों से अलग करती है. यहां नाग पंचमी के दिन आस-पास के जनपदों से आने वाले श्रद्धालु विशेष पूजा अर्चना करते हैं. इसके साथ ही यहां पर दो दिन तक लगातार मेला चलता है. मेले में दंगल का भी आयोजन होता है.

क्या कहते है ग्रामीण
इसी गांव के निवासी बलवीर बताते है कि "कन्नौज के राजा जयचंद्र की रानी सुरंग के द्वारा मंदिर में पूजा अर्चना करने आती थी. इसके साथ ही गांव में स्थित मिट्टी के टीलों पर भगवान शिव की प्रतिमाएं निकलती रहती है. कोई बाहरी व्यक्ति मंदिर या उसके आस-पास से कोई पत्थर भी लेकर नहीं जा पाता. अगर कोई ले भी जाता है तो उसे सांप ही सांप दिखाई देते हैं और उसे वो पत्थर वापस रखने पड़ता है. गांव में राजा जनमेजय को काटने वाले तक्षक प्रजाति के नाग निकलते रहते हैं. विशेषकर नागपंचमी पर ये नाग मंदिर में आते-जाते रहते है. गांव के रहने वाले रामलखन गुप्ता का कहना है कि "ये नाग मंदिर काफी प्राचीन है और नागपंचमी पर काफी दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करने आते हैं. शेषनाग भगवान उनकी मनोकामना पूरी भी करते है. मंदिर में खंडित पड़ी मूर्तियां मंदिर की प्राचीनता को दर्शाती हैं."

यह स्टोरी मान्यताओं पर आधारित है. ईटीवी भारत अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता है.

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