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कब्रों के बीच मांगी जाती माता रानी से मन्नतें, दुआ में उठते हाथ - अमरोहा का कब्रिस्तान

अमरोहा का कब्रिस्तान हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल पेश करता है. जी हां, इस कब्रिस्तान में मां चामुंडा देवी का मंदिर और मजार है. जहां पर आरती और दुआएं एक साथ मांगी जाती हैं. इस गांव में हिंदू और मुस्लिमों में बहुत प्रेम है. यहां ये दोनों समुदाय एक होकर रहते हैं.

मंदिर के पास बनी मजार
मंदिर के पास बनी मजार

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Published : Jan 10, 2021, 4:35 PM IST

अमरोहा: जनपद के गजरौला विकासखंड गांव के कब्रिस्तान में मां चामुंडा देवी का मंदिर और मजार है. कब्रिस्तान में दुआ और आरती का सिलसिला एक साथ शुरू होता है और एक साथ खत्म. इससे किसी को भी कोई दिक्कत नहीं होती है. हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे के धार्मिक आयोजनों में बिना किसी भेदभाव और संकोच के बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. इसीलिए इस गांव की मजार और मंदिर अन्य जनपदों में भी चर्चाओं में हैं.

अमरोहा का कब्रिस्तान.
बिना भेद-भाव के रहते हैं दोनों समुदाय

अमरोहा जिले के गजरौला से 5 किलोमीटर दूर नौनेर चकनवाला रोड पर बसे 1500 आबादी वाले गांव सिहाली गोसाई में हिंदू-मुस्लिम मिल-जुलकर रहते हैं. कब्रिस्तान के बीच में मां चामुंडा देवी का मंदिर है. इसमें होने वाले आयोजनों में मुसलमान बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. हिंदू की शव यात्रा में शामिल होकर मुसलमान गंगा नदी तक जाते हैं, तो मुस्लिम समुदाय के किसी व्यक्ति की मौत होने पर हिंदू कब्रिस्तान पहुंचते हैं.






तोड़ दिया गया था मंदिर का चबूतरा

करीब 45 साल पहले वर्ष 1974 में यहां सलेमपुर रियासत का बाग हुआ करता था. उस बाग में एक चबूतरे पर चामुंडा देवी स्थापित थीं. बाग कटने के बाद मुस्लिम समाज के लोगों ने इस जमीन की घेराबंदी कर कब्रिस्तान बना दिया. एक दिन किसी व्यक्ति ने मंदिर के चबूतरे को ध्वस्त कर दिया. तब आसपास आबादी नहीं थी. कुछ ही कच्चे मकान थे. उस समय कुछ लोगों ने माहौल बिगाड़ने की कोशिश की, लेकिन आपसी सहमति बनी और पुलिस प्रशासन ने चामुंडा देवी के चबूतरे की मरम्मत कराते हुए उसके चारों तरफ पक्की दीवार बनवा दी. इसके कुछ समय बाद ही मंदिर के पास एक मजार बना दी गई. मंदिर और उसके पास मजार होने के बावजूद आज तक कोई धार्मिक विवाद सामने नहीं आया है.


गांव में बहुत है भाईचारा

ग्रामीण चौधरी जब चरण सिंह ने बताया कि लोग कहते हैं कि गाय या भैंस के ब्याने पर उसका पहला दूध चामुंडा मंदिर में ही चढ़ाया है. बुजुर्ग मास्टर अब्दुल सलाम गर्व से बताते हैं कि हमारे गांव में भाईचारा बहुत है. आज तक यहां पर कभी कोई मजहबी विवाद नहीं हुआ. हम एक दूसरे के कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं


हिंदू करते हैं मस्जिद की सफाई

गांव के रहने वाले रोजदार खान ने बताया कि मंदिर और मजार की सफाई गांव के जयसिंह ही करते हैं. जयसिंह की कपड़ों की दुकान है, लेकिन वह धार्मिक कार्य में अधिक रूचि रखते हैं. उनका ज्यादा समय सरस्वती शिशु मंदिर में ही गुजरता है. वे सुबह-शाम कब्रिस्तान में बने चामुंडा देवी मंदिर और नजदीक बनी मजार की साफ-सफाई करते हैं.


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