बावनखेड़ी में किसी बेटी का नाम नहीं रखा जाता 'शबनम', जानिए वजह
अमरोहा के बावनखेड़ी गांव की रहने वाली शबनम को कोर्ट ने फांसी की सजा दी है. आजाद भारत में किसी महिला को पहली बार फांसी की सजा सुनाई गई है. शबनम ने अपने ही मां-बाप, भतीजे, दो भाई, एक भाभी और रिश्ते की बहन की कुल्हाड़ी से हत्या की थी. आज बावनखेड़ी गांव में हर मां-बाप अपने बेटी का नाम शबनम रखने से भी डरते हैं. लोगों को शबनम के नाम से नफरत हो गई है. आगे जानिए पूरी कहानी.
अमरोहा की शबनम को फांसी की सजा.
अमरोहा:जिले के बावनखेड़ी गांव में उस रात के बाद हुए हादसे से बावनखेड़ीगांव के लोगों के जेहन में आज भी शबनम नाम से रोष है, जिसमें गांव के लोग हुए उस हादसे के बाद अपनी बेटी का नाम शबनम नहीं रखते. गांव के लोग नहीं, बल्कि इस नाम से आस पड़ोस के लोग भी खौफ खाते हैं. शबनम नाम से आज भी गांव के लोग बहुत नफरत करते हैं.
आपको बता दें कि 14/15 अप्रैल 2008 की रात में शबनम द्वारा किए गए नरसंहार ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. उस रात एक ही परिवार के 7 सदस्यों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. यह हत्या और किसी ने नहीं, बल्कि शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ खुद मिलकर की थी. इसलिए यह गांव शबनम के नाम से अब भी खौफ खाता है और नफरत करता है. बावनखेड़ी हत्याकांड के 13 साल बाद भी गांव वाले अपनी बेटी का नाम शबनम रखने को तैयार नहीं हैं. गांव वाले ही नहीं आस-पास के गांव के लोग भी जल्द से जल्द शबनम की फांसी का इंतजार कर रहे हैं.
बावनखेड़ीगांव के ग्रामीणों ने कहा
13 साल बाद भी बावनखेड़ीके लोग बेटियों का नाम शबनम इसलिए नहीं रखते, क्योंकि शबनम के नाम से उन लोगों को नफरत और खौफ है, क्योंकि वह शबनम ही थी, जिसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपना हंसते-खेलते परिवार मौत की नींद सुला दी थी. शबनम के मकान में रह रहे उसके चाची-चाचा ने बताया कि शबनम की फांसी में अब देरी नहीं होनी चाहिए. यदि फांसी से भी बड़ी कोई सजा है, तो वह शबनम को मिलनी चाहिए. घटना के बाद बावनखेड़ीके किसी भी घर में बेटी का नाम शबनम नहीं रखा जाता है.