अमरोहाःगंगा-जमुनी तहजीब का अनूठा रंग देखना है तो सांप्रदायिक एकता की मिसाल अमरोहा शहर आ जाइए. आम की मिठास के लिए देश-विदेश में मशहूर इस शहर में होली की टोपियां हाथों से बनती हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी करीब 60 साल से मुस्लिम कारोबारी नसीम हाथों से होली की टोपियां बनाकर पूरे देश में सप्लाई कर हिंदुओं की होली में रंग भरते हैं. होली से दो माह पहले टोपी तैयार करने का काम शुरू हो जाता है. लेकिन नसीम का कहना है कि इस बार कोरोना ने हमारी कमर तोड़ दी, कोरोना के डर की वजह से होली टोपी की मांग कम है, हर साल करीब 10 लाख रुपये की टोपी का कारोबार होता है लेकिन कोरोना की दहशत की वजह से होली की टोपी की मांग न होने पर मंदी छाई है. नसीम का कहना है कि अब उनको पंचायत चुनाव से उम्मीद है, जिसमें वह चुनाव चिह्न की टोपियां बनाएंगे.
दशकों से बना रहे टोपी
अमरोहा शहर के मोहल्ला बटवाल के रहने वाले मुस्लिम कारोबारी नसीम पिछले 60 सालों से होली की टोपी तैयार करते आ रहे हैं. इस कार्य में हजारों महिलाएं अपने हाथों से मेहनत-मजदूरी करती हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी होली की टोपी तैयार करने का कार्य आज भी जारी है. यह टोपी उत्तर प्रदेश के अधिकांश जनपदों के लोगों द्वारा होली पर पहनी जाती है, देखने में आकर्षक लगती हैं. टोपी में चार प्रकार के रंगों का इस्तेमाल होता है. यह टोपी अन्य टोपियों से अलग हटकर होती है. होली से दो माह पहले टोपी तैयार करने का कार्य शुरू हो जाता है. काफी संख्या में मुस्लिम कारीगर इस कार्य में जुट जाते हैं. टोपी तैयार करने का सारा कार्य हाथों से तैयार किया जाता है. यहां तक की टोपी की सिलाई भी हाथों से ही की जाती है. इसे तैयार करने में काफी समय लगता है. कारीगर इस टोपी पर अपना हुनर भी दिखाते हैं, लेकिन नसीम का कहना है कि इस बार कोरोना ने हमारी कमर तोड़ दी, कोरोना के डर की वजह से होली टोपी की मांग कम है.