अंबेडकरनगर: गरीब महिलाओं को धुएं और जहरीली गैसों से निजात दिलाने के लिए पीएम मोदी ने उज्जवला योजना की शुरूआत की थी. इस योजना के तहत अब तक लक्ष्य के मुताबिक लोगों को सिलेंडर मिल भी चुका है, लेकिन अधिकांश घरों में ये सिलेंडर केवल शोपीस बनकर रह गए हैं. दरअसल, सरकार से सिलेंडर तो मिल गया, लेकिन इन गरीबों के पास गैस भराने के लिए पैसा ही नहीं हैं. ऐसे में महिलाएं अब भी उसी लकड़ी के चूल्हे पर खाना बना रहीं हैं, जिससे प्रधानमंत्री निजात दिलाना चाहते थे.
उज्जवला योजना की ग्राउंड रिपोर्ट. पैसों के अभाव में खाली पड़े सिलेंडर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से प्रधानमंत्री उज्वला योजना की शुरूआत की थी. गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली महिलाओं को मुफ्त में सिलेंडर देना इस योजना की प्राथमिकता थी. योजना के तहत अंबेडकरनगर जनपद के गरीब परिवारों को सिलेंडर मिल गया. जब इन सिलेंडरों की गैस खत्म हुई तो फिर दोबारा नहीं भरी जा सकी. गरीब परिवार पैसे के अभाव में महीनों से सिलेंडर नहीं भरा पा रहे हैं. दिहाड़ी मजदूरी कर जीवन यापन करने वाले परिवारों के पास पैसे नहीं हैं इसलिए उनके घरों में फिर से चूल्हे का धूआं घुमड़ने लगा है.
सिलेंडर से पहले रोजगार की जरूरत
जनपद के ग्रामीण इलाकों में उज्जवला योजना की हकीकत साफ हो जाती है. जिन लोगों के पास खेती और रोजगार नहीं है वे दिन भर मजदूरी कर अपना पेट पालते हैं. तमाम खर्चों के बाद उनके पास इतने पैसे नहीं बचते जिससे सिलेंडर में गैस भराई जा सके. मजबूरन उन्हें चूल्हे पर खाना बनाना पड़ता है. इन ग्रामीणों की मांग है कि सरकार सिलेंडर से पहले उन्हें रोजगार उपलब्ध कराए. उन्हें सिलेंडर से ज्यादा जरूरत रोजगार और काम-धंधे की है.
हमें गैस सिलेंडर मिला है, लेकिन कई महीनों से भराया नहीं गया. हम लकड़ी के चूल्हे पर ही खाना बनाते हैं क्योंकि हमारे पास पैसा नहीं है. इसके लिए पहले हमें रोजगार चाहिए.
-सरिता, ग्रामीण महिला (उज्जवला योजना लाभार्थी)