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अम्बेडकरनगर: जानिए पहली कांवड़ यात्रा की मार्मिक कहानी - सावन

सावन में कांवड़ लिए शिवभक्तों की जय-जयकार हर तरफ सुनाई देती है. त्रेता युग में मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को चारों धाम की यात्रा कराने के लिए पहली बार कावड़ उठाया था, तब से कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है.

पहली कांवड़ यात्रा की कहानी

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Published : Jul 31, 2019, 12:13 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:26 PM IST

अम्बेडकरनगर:सावन में कांवड़ियों की धूम रहती है. सावन में गेरुआ वस्त्र और कंधे पर कांवड़ लिए शिवभक्तों की टोली हर जगह दिखाई देती है. ऐसी मान्यता है कि सबसे पहली कांवड़ श्रवण कुमार ने उठाई. उन्होंने अपने अन्धे माता-पिता को चारों धाम की यात्रा कराने के लिए सर्वप्रथम कांवड़ उठाई, तब से ही कांवड़ उठाने की प्रथा प्रचलन में आई.

पहली कांवड़ यात्रा की कहानी.

क्या है कांवड़ की कहानी

धार्मिक ग्रन्थों के मुताबिक त्रेता युग में मार्कंडेय नगर आधुनिक गाजीपुर जिला निवासी श्रवण कुमार के अंधे माता-पिता ने चारों धाम करने की इच्छा व्यक्त की. दृष्टि न होने के कारण अब वो चल नहीं सकतेथे. इसलिए श्रवण कुमार उनकी इच्छा की पूर्ति के लिए उन्हें कांवड़ में बैठाकर और उस कांवड़ को अपने कंधे पर उठाकर चारों धाम पर निकल पड़े. ऐसी मान्यता है कि अयोध्या नमन के बगैर ये धर्म यात्रा अधूरी रहती है. इसलिए श्रवण ने पहले अयोध्या की तरफ ही प्रस्थान किया. श्रवण कुमार अयोध्या की सीमा में मड़हा और विसुही नदी के संगम स्थल पर पहुंचे थे, तभी उनके माता-पिता ने पानी पीने की इच्छा व्यक्त की.

श्रवण कुमार उस कांवड़ को नदी किनारे रखकर तमसा नदी से जल लेने गए थे. श्रवण कुमार ने जल भरने के लिए गागर को जैसे ही पानी में डुबोया तो वहां के जंगलों में शिकार खेल रहे अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट दशरथ ने ये समझा कि शेर नदी में पानी पी रहा है उन्होंने अपना शब्द भेदी बाण चला दिया, जिससे श्रवण कुमार की वहीं मौत हो गई. ये देख राजा को घोर पश्चाताप हुआ, वो जल लेकर श्रवण कुमार के माता-पिता के पास गए, लेकिन बेटे की मौत की खबर सुनकर उन्होंने पानी पीने से इनकार कर दिया. पुत्र वियोग से व्यथित श्रवण के माता-पिता ने राजा दशरथ को पुत्र वियोग में मरने का श्राप देकर अपना प्राण त्याग दिया और यहीं तमसा नदी के किनारे उस कांवड़ यात्रा का दर्दनाक मार्मिक अंत हो गया. तब से इस क्षेत्र को श्रवण धाम के नाम से जाना जाता है.


श्रवण कुमार के माता-पिता अनन्य शिव भक्त थे और इसी कांवड़ यात्रा के बाद ही कांवड़ उठाने की प्रथा प्रचलित हुई. त्रेता युग में ही सबसे पहले कांवड़ उठाया गया था.
-अमित कुमार, स्थानीय निवासी

त्रेता युग में अपने माता-पिता को चारोधाम की यात्रा कराने के लिए श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ उठाया था और तब से यह प्रथा प्रचलन में है.
-बच्ची दास, श्रवण धाम की पुजारी

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:26 PM IST

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