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प्रयागराज कुंभः जानें बाल साधुओं का रहस्य, अनोखी है इनकी तपस्या की कहानी - बाल नागा साधु

नागा साधु बनने वाले इसमें ज्यादातर ऐसे हैं बच्चे जो माता-पिता के संकल्प और मन्नत के चलते सन्यासी बन गए है. भारत के पंजाब ,हरियाणा और कुछ गुजरात के इलाकों में लोगों की ऐसी श्रद्धा व मनौती होती है कि वह अपने बच्चों को धर्म के नाम पर दान करेंगे.

कुंभ में बाल नागा साधु

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Published : Feb 7, 2019, 10:03 AM IST

प्रयागराजः कुम्भ में आये नागा साधु देश-दुनिया से अलग सनातन धर्म की रक्षा के लिए तपस्या में लीन है. इनके बीच बाल नागा साधू कुंभ आने वाले तीर्थ यात्रियों के आकर्षण के केन्द्र बने हैं. तन पर वस्त्र के नाम पर सिर्फ एक पतली लंगोट, शरीर पर लपटा भभूत और मुस्कराता चेहरा लोगों को अपने और खीच लेता है.

कुम्भ मेले में आये इन बाल नागा साधुओं को यह नहीं पता है कि डॉक्टर और इंजीनियर क्या होता है. इनको अगर पता है तो सिर्फ सनातन धर्म. कुम्भ मेले के दौरान सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये सन्यास का रास्ता चुन चुके इन बाल साधुओं को अपने घर परिवार वालों का पता नहीं है और न ही उन्हें अब उनकी याद आती है. इन्हें अच्छा लगता है तो सिर्फ साधु-संतों के साथ रहना और साधना करना.

कुम्भ मेले में इस बार सभी अखाड़ों में एक दो बाल साधु हैं. जिनसे आशीर्वाद लेने वालों का तांता लगा रहता है. साधु संतों के शिविर में इन बाल साधुओं का बचपन भी नजर आता है. सामान्य बच्चों की तरह ये नागा सन्यासी खेलकूद और आपस मे लड़ते झगड़ते भी नजर आते हैं. गले में रुद्राक्ष की माला फेरते और साथी बाल साधु से मिलाप करते हुए यह दृश्य राह चल रहे लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है.

बाल नागा साधुओं की अनोखी कहानी

बता दें कि कुंभ मेले की शान सभी 13 अखाड़े इन नए साधु संतों की शिक्षा दीक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. गुरुकुल शिक्षा प्रणाली पर आधारित शिक्षा दीक्षा का काम इनके गुरु की देख रेख में होता है. वेद और सनातन धर्म की शिक्षा के साथ इन्हें शस्त्र विद्या भी सिखाई जाती है. नागा साधु बनने वाले इसमें ज्यादातर ऐसे बच्चे हैं जो माता-पिता के संकल्प और मन्नत के चलते सन्यासी बन गए हैं. भारत के पंजाब ,हरियाणा और कुछ गुजरात के इलाकों में ऐसी श्रद्धा व मनौती होती है कि वह अपने बच्चों को धर्म के नाम पर दान करेंगे.

ऐसे में जब तक बच्चा मां का दूध पीता रहता है तब तक वह अपनी मां के साथ रहता है. और जब वह दो तीन साल का होता है तो उनके माता पिता इन्हें साधु-संतों को दान कर देते हैं. ऐसे बच्चों को साधू-संत अखाड़ों की मान्यता और नियम के तहत माता-पिता की रजा मंदी से इनका दान अखाड़ों में लेते है.


हालांकि साधु सन्यासियों की माने तो इनके बालिग होने (18 साल की उम्र) तक इनको किसी भी प्रकार का सन्यास नहीं दिलाया जाता है. बालिग होने के बाद उनकी इच्छा अनुसार इन्हें सन्यास की दीक्षा दी जाती है. इसके पहले ये बाल नागा साधु सामाजिक और पारिवारिक जीवन में जाने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होते हैं.

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