अलीगढ़:कुंवर अखलाक मोहम्मद खान उर्फ शहरयार आधुनिक उर्दू शायरी के हस्ताक्षर थे. उर्दू के साथ हिंदी में भी उन्होंने काफी साहित्य लिखा है. हालांकि उनकी पहचान उमराव जान मूवी के लिखे गानों से हुई. उनकी नज्म और कविताओं में आम आदमी की जिंदगी का फलसफा झलकता था. उनकी शायरी में मानवीय संवेदना थी. उर्दू साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें साहित्य एकेडमी अवॉर्ड और ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित किया गया. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में वह उर्दू विभाग के चेयरमैन रहे. वह एक कवि ही नहीं एक टीचर और संपादक भी रहे. वे एएमयू में नॉवेल और अफसाना पढ़ाते थे. एएमयू के जनसंपर्क विभाग के मेंबर इंचार्ज शाफे किदवई ने बताया कि उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करना अहम बात है.
'शहरयार' के नाम से पाई प्रसिद्धि
साहित्य की दुनिया में कुंवर अखलाक मोहम्मद खान 'शहरयार' के नाम से जाने जाते हैं. उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के आंवला में 16 जून 1936 को उनका जन्म हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा हरदोई में प्राप्त करने के बाद 1948 में वे अलीगढ़ आ गये. यहां उन्होंने उर्दू में एमए किया. इसके बाद 1966 में एएमयू के उर्दू विभाग में लेक्चरर हो गये. 1996 में प्रोफेसर बने और उर्दू के चेयरमैन के रूप में रिटायर हुये. शुरुआत में उनकी कुछ शायरी कुंवर अखलाक मोहम्मद के नाम से प्रकाशित हुईं, लेकिन बाद में उन्होंने शहरयार के नाम से लिखना शुरू किया. उन्होंने शायरी के साथ शिक्षक और संपादक के काम जिम्मेदारी से किये. 'गमन' और 'अंजुमन' जैसी फिल्मों के गाने लिखे, लेकिन 'उमराव जान' के गाने से उनकी प्रसिद्धि हुई. उनकी शायरी के कई संग्रह प्रकाशित हुए हैं. उनकी कलाम का अनुवाद फ्रेंच, जर्मन, रूसी, मराठी, बंगाली और तेलुगु में भी हो चुका है. ज्ञानपीठ अवार्ड और साहित्य अकादमी से उन्हें सम्मानित किया गया. 13 फरवरी 2012 को उन्होंने अंतिम सांस लीं.