अलीगढ़: देश के महान क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह का अलीगढ़ से नाता रहा है. उन्होंने यहां पिसावा क्षेत्र के गांव शादीपुर में 18 महीने गुजारे थे. फरारी के दौरान स्कूल खोलकर यहां बच्चों को न केवल पढ़ाया, बल्कि देशभक्त की भावना को भी लोगों में जागृत किया. कहा जाता है कि भगत सिंह यहां वेष और नाम बदल कर रहे थे, ताकि उन्हें कोई पहचान न सकें. हालांकि 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी दे दी गई थी. इसी दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है. आज भी शादीपुर गांव में भगत सिंह की निशानी मौजूद है. 23 मार्च को शादीपुर गांव में यहां के लोग एकत्र हो भगत सिंह को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.
दरअसल, अंग्रेज जनरल सांडर्स की हत्या के बाद अलीगढ़ के शादीपुर में भगत सिंह ने बसेरा बनाया था. इस इलाके के ठाकुर टोडर सिंह भी महान क्रांतिकारी थे. 1928 में टोडर सिंह कानपुर में क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने गए. वही, सरदार भगत सिंह से मुलाकात हुई. अंग्रेज, सांडर्स की हत्या के बाद क्रांतिकारियों को ढूंढ रही थी. गणेश शंकर विद्यार्थी के कहने पर टोडर सिंह, भगत सिंह को अलीगढ़ के शादीपुर इलाके में ले आएं. गांव के बाहर वागीचे में ही उनके रहने की व्यवस्था की गई. भगत सिंह ने अपना नाम यहां बलवंत सिंह रखा ताकि कोई पहचान न पाएं. इसलिए भगत सिंह ने अपनी दाढ़ी और बाल भी कटवा लिए थे. भगत सिंह ने यहां बच्चों के लिए स्कूल भी खोला, जो नेशनल स्कूल के नाम से जाना जाता है. स्कूल के पास ही कुआं था. जहां से स्नान और जल पीने की व्यवस्था थी. यहां रहकर भगत सिंह ने लोगों को शिक्षा के साथ देशभक्ति का जज्बा भी पैदा किया था. शिक्षा के साथ कुश्ती दंगल भी सिखाया जाता था. वहीं, आसपास के इलाके के रहने वाले लोग उनसे शिक्षा लेने आते थे. जिसमें जलालपुर के रामशरण, नत्थन सिंह, मढ़ा हबीबपुर के रघुवीर सिंह, खैर के हरिशंकर आजाद और शादीपुर के नारायण सिंह शामिल है. 18 महीने रहने के दौरान भगत सिंह यहां से क्रांतिकारी गतिविधियों पर विमर्श भी करते थे.