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Shaheed Bhagat Singh: शादीपुर गांव से है शहीद भगत सिंह का गहरा नाता, बच्चों के लिए खोला था स्कूल

शादीपुर गांव की मिट्टी भगत सिंह की वीरता की कहानी बताती है. जी हां भगत सिंह ने यहां 18 महीने गुजारे थे. लेकिन 1929 में भगत सिंह ने शादीपुर को छोड़ने का निर्णय लिया. यह फैसला आसान नहीं था. उन्हें मां की बीमारी का बहाना बनाना पड़ा. ऐसे में जानते है कि उनकी शादीपुर में पहुंचने की रोचक कहानी है.

Shaheed Bhagat Singh
Shaheed Bhagat Singh

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Published : Mar 23, 2023, 3:47 PM IST

जानकारी देते हुए स्थानीय निवासी

अलीगढ़: देश के महान क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह का अलीगढ़ से नाता रहा है. उन्होंने यहां पिसावा क्षेत्र के गांव शादीपुर में 18 महीने गुजारे थे. फरारी के दौरान स्कूल खोलकर यहां बच्चों को न केवल पढ़ाया, बल्कि देशभक्त की भावना को भी लोगों में जागृत किया. कहा जाता है कि भगत सिंह यहां वेष और नाम बदल कर रहे थे, ताकि उन्हें कोई पहचान न सकें. हालांकि 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी दे दी गई थी. इसी दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है. आज भी शादीपुर गांव में भगत सिंह की निशानी मौजूद है. 23 मार्च को शादीपुर गांव में यहां के लोग एकत्र हो भगत सिंह को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

पानी व्यवस्था के लिए कुएं का निर्माण

दरअसल, अंग्रेज जनरल सांडर्स की हत्या के बाद अलीगढ़ के शादीपुर में भगत सिंह ने बसेरा बनाया था. इस इलाके के ठाकुर टोडर सिंह भी महान क्रांतिकारी थे. 1928 में टोडर सिंह कानपुर में क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने गए. वही, सरदार भगत सिंह से मुलाकात हुई. अंग्रेज, सांडर्स की हत्या के बाद क्रांतिकारियों को ढूंढ रही थी. गणेश शंकर विद्यार्थी के कहने पर टोडर सिंह, भगत सिंह को अलीगढ़ के शादीपुर इलाके में ले आएं. गांव के बाहर वागीचे में ही उनके रहने की व्यवस्था की गई. भगत सिंह ने अपना नाम यहां बलवंत सिंह रखा ताकि कोई पहचान न पाएं. इसलिए भगत सिंह ने अपनी दाढ़ी और बाल भी कटवा लिए थे. भगत सिंह ने यहां बच्चों के लिए स्कूल भी खोला, जो नेशनल स्कूल के नाम से जाना जाता है. स्कूल के पास ही कुआं था. जहां से स्नान और जल पीने की व्यवस्था थी. यहां रहकर भगत सिंह ने लोगों को शिक्षा के साथ देशभक्ति का जज्बा भी पैदा किया था. शिक्षा के साथ कुश्ती दंगल भी सिखाया जाता था. वहीं, आसपास के इलाके के रहने वाले लोग उनसे शिक्षा लेने आते थे. जिसमें जलालपुर के रामशरण, नत्थन सिंह, मढ़ा हबीबपुर के रघुवीर सिंह, खैर के हरिशंकर आजाद और शादीपुर के नारायण सिंह शामिल है. 18 महीने रहने के दौरान भगत सिंह यहां से क्रांतिकारी गतिविधियों पर विमर्श भी करते थे.

शादीपुर गांव

शादीपुर से बलवंत सिंह को लगाव हो गया था. वही 1929 में भगत सिंह ने शादीपुर को छोड़ने का निर्णय लिया. यह फैसला आसान नहीं था. उन्हें मां की बीमारी का बहाना बनाना पड़ा और झूठ बोला कि मां बीमार है और उसे देखकर लौट आएंगे. टोडर सिंह ने उनको खुर्जा स्टेशन छुड़वाया. वही भगत सिंह पंजाब जाने की बजाय कानपुर वाली ट्रेन में बैठ गए. ट्रेन पर छोड़ने आए व्यक्ति से उन्होंने बोला कि मेरी मां बीमार नहीं है, बल्कि भारत माता को आजाद कराने जा रहा हूं. 23 मार्च 1931 को जब राजगुरु, सुखदेव के साथ भगत सिंह को फांसी दी गई, तो शादीपुर के लोग स्तब्ध रह गये. उन्हें पता चला कि बच्चों को पढ़ाने वाला कोई और नहीं बल्कि महान क्रांतिकारी भगत सिंह थे. उस दिन से आज तक शादीपुर के लोग भगत सिंह को भूल नहीं पाए हैं. हालांकि 1931 में ही सरदार भगत सिंह नौजवान सभा के कार्यक्रम में अलीगढ़ आए थे.

बच्चों के लिए खोला था स्कूल

आज शादीपुर गांव में उनकी याद में एक पार्क बनाया गया है. शहीद दिवस पर उनकी याद को ताजा करते हुए कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. हालांकि जिस स्थान पर भगत सिंह ने नेशनल स्कूल चलाया, वहां मौजूद कुआं और अन्य स्थान खंडहर में बदल गया हैं. स्थानीय लोग चाहते हैं कि उनके नाम से सरकार यहां विद्यालय चलाएं. लेकिन जो जिस विद्यालय की नींव भगत सिंह ने रखी वह खंडहर में बदल गया है. भगत सिंह की यहां से जाते समय इच्छा थी कि यह विद्यालय चलता रहे और बड़ा बने, लेकिन उनकी मुराद पूरी नहीं हुई. भगत सिंह की याद में यहां देशभक्ति से जुड़ी रागनी गाई जाती है. यहां रहने वाले योगेश कुमार बताते हैं कि जब गांव के लोगों को पता चला कि यहां रहने वाला व्यक्ति महान क्रांतिकारी भगत सिंह था तो लोगों की आंखें भर आई. भगत सिंह की चर्चा आज भी इलाके में होती है.

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