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सर सैयद अहमद खां क्यों रखते थे हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां, जानिए हकीकत

स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और गणित, चिकित्सा, साहित्य, पुरातत्व विषयों पर खासी पकड़ रखने वाले सर सैयद अहमद खां को हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां एकत्रित करने का भी शौक था. वह एएमयू की स्थापना करने से पहले ही मूर्तियां एकत्रित करने लग गए थे. एएमयू के सहायक मेम्बर इंचार्ज राहत अबरार ने बताया कि हमें गर्व है कि उन्होंने ऐसी चीजों को संरक्षित रखा है, जिसमें हिन्दू, बौद्ध, जैन धर्म की मूर्तियां शामिल हैं.

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Published : Nov 25, 2020, 10:45 PM IST

हिन्दू-देवी देवताओं की मूर्तियां एकत्र करने का शौक.
हिन्दू-देवी देवताओं की मूर्तियां एकत्र करने का शौक.

अलीगढ़: इस्लाम में बुतपरस्ती की मनाही है, लेकिन मुस्लिमों में पुनर्जागरण लाने वाले सर सैयद अहमद खां को हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों से लगाव था. उनके इस लगाव के चलते ही फतवा जारी करने वालों ने सर सैयद अहमद खां को काफिर तक कह डाला था, लेकिन वे आधुनिकतावादी थे. उनके ऊपर सन् 1857 की क्रांति का बहुत बड़ा असर था. उन्होंने अपनी किताब 'असबाब ए बगावत ए हिंद' में अंग्रेजों पर हिंदुस्तानी संस्कृति को खत्म करने का इल्जाम लगाया है. सर सैयद अहमद खां अपने दौर के जहीन इंसानों में से थे. गणित, चिकित्सा, साहित्य, पुरातत्व विषयों पर उनकी अच्छी पकड़ थी.

हिन्दू-देवी देवताओं की मूर्तियां एकत्र करने का शौक.

एएमयू में संरक्षित है हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां
एएमयू बनाने से पहले सर सैयद अहमद खां ने हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां एकत्रित की थीं. सर सैयद अहमद खां द्वारा एकत्रित की गई हिंदू देवी-देवताओं की करीब 27 मूर्तियां आज भी संरक्षित हैं. एएमयू के मूसा डाकरी म्यूजियम में इन दुर्लभ मूर्तियों को रखा गया है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना से पहले ही सर सैयद अहमद खां ने पुरातात्विक महत्व की चीजों को जुटाना शुरू कर दिया था. इन प्रतिमाओं में जैन और बौद्ध धर्म की मूर्तियां भी शामिल हैं. इसके अलावा गणेश, भगवान विष्णु और सूर्य देव की मूर्तियां भी संरक्षित हैं. सर सैयद द्वारा एकत्रित की गईं हिंदू-देवी देवताओं की 27 मूर्तियां मूसा डाकरी म्यूजियम में संरक्षित की गई हैं.

एएमयू का मूसा डाकरी म्यूजियम
दुर्लभ चीजों का संग्रह करते थे सर सैयद अहमदअलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खां को दुर्लभ चीजें संजोकर रखने का शौक था ताकि आने वाली पीढ़ियां उससे कुछ सीखें. सर सैयद अहमद खां ने 27 हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को संरक्षित किया था. उन्होंने यह काम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना से पहले 1864 में शुरू कर दिया था. सर सैयद अहमद खां की कई हिंदू राजाओं से मित्रता थी. सर सैयद अहमद खां की राजा जय किशन दास से गहरी दोस्ती थी. 1863 में राजा जयकिशन अलीगढ़ के डिप्टी कलेक्टर थे और साइंटिफिक सोसायटी के संस्थापक सदस्य थे. तब उन्होंने सर सैयद अहमद खां को कुछ प्रतिमाएं भेंट की थीं. इसमें महावीर जैन का स्तूप अद्भुत है. इस स्तूप का वजन करीब एक टन है. स्तूप के चारों ओर आदिनाथ की 23 मूर्तियां हैं. सुनहरे पत्थर के बने पिलर में कंक्रीट की सात देव प्रतिमाएं, शेषनाग की शैया पर लेटे भगवान विष्णु और कंक्रीट के बने सूर्यदेव मौजूद हैं.
मूसा डाकरी म्यूजियम में रखा जैन स्तूप.
महाभारत काल की चीजें भी यहां सुरक्षित हैंएएमयू के सहायक मेम्बर इंचार्ज राहत अबरार ने बताया कि इस म्यूजियम में सर सैयद अहमद खां से जुड़ी यादें मौजूद हैं. मूसा डाकरी म्यूजियम में कई ऐतिहासिक चीजें हैं. उन्हें देखकर पुराने समय की याद आ जाती है. म्यूजियम में पुरातात्विक महत्व की चीजें रखी गई हैं. इन्हें एएमयू के विशेषज्ञों ने एटा के अतरंजीखेड़ा, फतेहपुर सीकरी आदि इलाकों में खोजा है. इसमें मूर्तियों के साथ ही पाषाण युगीन बर्तन, पत्थर और लोहे के हथियार भी हैं. महाभारत काल की कुछ चीजें भी यहां सुरक्षित हैं. एएमयू के विक्टोरिया गेट से उतारी गई प्राचीन घड़ी भी है. इतना ही नहीं यहां डायनासोर के अवशेष भी रखे हैं.
टूटी हुई जैन धर्म की मूर्ति.
बौद्ध और जैन धर्म की भी मूर्तियां हैं संरक्षितसर सैयद अहमद खां की दिलचल्पी ऐतिहासिक महत्व की चीजों को संरक्षित करने में थी. सर सैयद अहमद खां ने इस बात का जिक्र अपनी किताब 'असबाब ए बगावत ए हिन्द' में भी किया है. इसमें उन्होंने हेरिटेज बिल्डिंग का जिक्र भी किया है. इस किताब पर उन्हें एडिनबरा विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि मिली थी. अलीगढ़ में भी उनका यह शौक बरकरार रहा. सन् 1864 में उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर से अलीगढ़ के ऊपरकोट इलाके की एक मीनार को संरक्षित करने के लिए मांग लिया था. सर सैयद ने जैन धर्म के स्तूप को भी संरक्षित किया. इसके साथ ही हिन्दू, बौद्ध और इस्लाम धर्म से ताल्लुक रखने वाली तमाम चीजें संजोकर रखीं. जब दिल्ली की अकबरी मीनार को अंग्रेजों ने तोड़ा तो उन पत्थरों को भी सर सैयद ने खरीदा.

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