अलीगढ़:अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय(AMU) के संस्थापक सर सैयद अहमद खान को आधुनिक स्कूल बनाने के लिए फतवों का सामना करना पड़ा था. इतना ही नहीं शिक्षा के लिए उन्हें पैरों में घुंघरू बांध कर चंदा भी मांगा. सर सैयद अहमद खान अंग्रेजों की गुलामी के समय मुसलमानों में शिक्षा का अलख जगाने की मुहिम चलाई थी. 27 मार्च 1898 को सर सैयद ने आखरी सांस ली थी. 1875 में सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में मदरसा की नींव रखी थी. जो 1920 में विश्वविद्यालय के रूप में एक वट वृक्ष बन गया है. इस विश्वविद्यालय से निकले छात्र दुनिया भर में देश का नाम चमका रहे हैं. एएमयू आज मुस्लिम शिक्षा का बड़ा केंद्र बन गया है.
आधुनिक चिंतन को लेकर बड़ा काम कियाःसर सैयद अहमद खान पर कई किताबें लिख चुके एएमयू के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी राहत अबरार ने बताया कि आज उनकी 125 वीं पुण्यतिथि है. उन्होंने बताया कि सर सैयद अहमद खान को केवल एएमयू के संस्थापक के रूप में सीमित कर दिया गया. जबकि सर सैयद अहमद खान आधुनिक चिंतन को लेकर बड़ा काम किया. शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना से बड़ा उनका राजनीतिक और धार्मिक विचार है. जिसे आज लोग भूल गए हैं. सर सैयद अहमद खान 1857 की क्रांति के बाद की स्थिति को समझ गए थे. उस समय मुसलमानों से सत्ता छीनी गई थी. अंग्रेज काबिज हो गए थे और हिंदुओं से तालमेल बैठाकर देश की आजादी के लिए चिंतन सर सैयद ने किया. सर सैयद अहमद खान उस समय शिक्षा को राजनीतिक सशक्तिकरण का माध्यम मानते थे. उन्होंने माना कि अगर हम शिक्षा में आगे आए तो उन्नति करेंगे. लेकिन बदकिस्मती से सर सैयद के मूल मंत्र को मुसलमानों ने भुला दिया है.
'अपनी मदद आप' का कांसेप्ट दिया थाःराहत अबरार के मुताबिक, सर सैयद बड़े आदमी नहीं थे. उनके पास दौलत थी और न जागीर थी. उन्होंने स्कूल की स्थापना के लिए लोगों से कहा कि जो व्यक्ति 25 रुपये देगा, उसका नाम बाउंड्री वॉल पर लिखा जाएगा. जो व्यक्ति 250 रुपये देगा उसका नाम हॉस्टल, क्लासरूम में लिखा जाएगा. वहीं, जो व्यक्ति 500 रुपये देगा, उसके नाम का पत्थर स्ट्रेची हॉल में लगेगा. सर सैयद ने शिक्षा के मामले में 'अपनी मदद आप' का कांसेप्ट दिया था. राहत अबरार कहते हैं कि आज मुसलमानों की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है तो क्यों नहीं अपनी शिक्षण संस्थाएं खुद स्थापित करें. कब तक हुकूमत की नजरों के सामने भीख मांगते रहेंगे. सर सैयद अहमद खान ने कहा था कि 'जो कौम भीख मांगती है, वो कभी तरक्की नहीं करती है. हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था में तब्दीली लानी पड़ेगी.'
राजा शंभू नारायण ने की थी मददःराहत अबरार ने बताया कि विद्रोह के वक्त सर सैयद अहमद खान शिक्षा के आधुनिकरण पर काम कर रहे थे. उनका आदर्श लोगों के सामने आया. उन्होंने अपने कॉलेज के दरवाजे सभी धर्मों के लिए खुले रखा. उन्होंने कहा था कि शिक्षा को विभाजित नहीं किया जा सकता. उस समय कॉलेज का पहला ग्रेजुएट हिंदू छात्र हुआ था. वहीं, आज छात्रावासों के नाम हिंदुओं के नाम पर है. राहत अबरार ने बताया कि बनारस के राजा शंभू नारायण बड़े अच्छे मित्र थे. जब एएमयू की आधारशिला रखी गई, उस समय राजा बनारस ने काफी मदद की थी. MAO कॉलेज की आधारशिला रकेन के समय बनारस से ही टेंट, शामियाना, क्रोकरी के सामान मंगाए गए थे.
सर सैयद अहमद खान के साथ राजा शंभू नारायण, राजा जय किशन दास, उस समय के वायसराय और मुसलमानों का एक तबका खड़ा था. जब सर सैयद अहमद खान की मौत हुई, उस समय प्रिंसिपल थियोडोर बेक थे. सर सैयद अहमद खान का बड़ा मकबरा विक्टोरिया गेट के सामने बनाये जाने की प्रस्तवा रखा, लेकिन उनके बेटे ने जामा मस्जिद के अंदर दफन किए जाने का फैसला किया था. आज भी लोग जामा मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ते हैं. उसके बाद सर सैयद अहमद खान की कब्र पर फातिहा पढ़ा जाता है. उन्होंने कहा कि आज जरूरत है सर सैयद अहमद खान के विचारों को आगे बढ़या जाए.