अलीगढ़: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) मंगलवार को राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय (Raja Mahendra Pratap Singh University) का शिलान्यास करने के लिए अलीगढ़ आ रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि पीएम मोदी जिस राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर यूनिवर्सिटी की नींव रखने जा रहे हैं, वो कभी जनसंघ के खिलाफ चुनाव भी जीत चुके हैं. उन्होंने साल 1957 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) को मथुरा लोकसभा क्षेत्र से हराया था. तब वाजपेयी भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार थे, जबकि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था. ये भी किसी से छिपा नहीं जब साल 2015 में ही अफगानिस्तान कि संसद (parliament of afghanistan) में जाट राजा की जमकर तारीफ कर चुके हैं. गौरतलब है कि 1957 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने वाजपेयी की लोकसभा चुनाव में जमानत जब्त करा दी थी.
25 दिसंबर 2015 के दिन दुनिया क्रिसमस (Christmas) का त्योहार मना रही थी. भारत में उस दिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन मनाया जा रहा था और पाकिस्तान में नवाज शरीफ (Nawaz Sharif) की सालगिरह मनाई जा रही थी. उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अफगानिस्तान की संसद में अटल ब्लॉक का उद्घाटन कर अफगानिस्तान की संसद को भी संबोधित किया था. यहीं से प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान भी गए थे. यह तारीख इतिहास में दर्ज है और दुनिया भर की मीडिया की नजर भी इसी पर थी, लेकिन जिस व्यक्ति ने एक बार लोकसभा चुनाव में भाजपा के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को करारी शिकस्त दी थी. उसी, भाजपा के दूसरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगानिस्तान की संसद में उस व्यक्ति की दिल खोलकर तारीफ की थी.
नोबल पुरस्कार कमेटी ने भी की थी राजा की तारीफ
राजा महेंद्र प्रताप शाही युवकों की तरह नहीं थे. वे अंग्रेजों से अपने लिए बेहतर सुविधा की मांग कर सकते थे और जीवन भर खुश रहते. वह मोहम्मद एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में पढ़ाई की. बाद में 1920 में इसका नाम बदलकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कर दिया गया. जहां अंग्रेजों, मुस्लिम टीचर और मुस्लिम मित्रों के बीच रहने से राजा महेंद्र प्रताप की सोच विश्व स्तर की हो गई. उनके अंदर क्रांति की लहरें हिलोरे मारने लगीं. 1905 के स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Movement 1905) से इतने प्रभावित हुए कि वे 1906 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में हिस्सा लेने चले गये. वामपंथी होने के बावजूद उनको कांग्रेस के हिंदूवादी नेता बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) और बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) पसंद आते थे. वे समझ गए थे कि देश में रहकर कुछ नहीं हो सकता. इसलिए ब्रिटिश सरकार की गुलामी के खिलाफ बाहर रहकर अभियान को धार दी.
लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को दी थी मात
यह व्यक्ति था राजा महेंद्र प्रताप सिंह. जिसकी तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 6 साल पहले ही अफगानिस्तान की संसद में कर चुके हैं. जिस व्यक्ति ने भाजपा के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लोकसभा चुनाव में हराया था. उसकी तारीफ करना क्या प्रधानमंत्री की मजबूरी थी या फिर भाजपा संगठन का महापुरुषों को लेकर बदलता नजरिया था. हालांकि, RSS पर रोक लगाने वाले सरदार पटेल आज भाजपा के पसंदीदा महापुरुषों में गिने जाते हैं. राजा महेंद्र प्रताप सिंह हाथरस जिले की मुरसान रियासत के राजा थे. हाथरस को काका हाथरसी और हींग व रबड़ी जैसे उत्पादों के केंद्र के रूप में जाना जाता है. राजा महेंद्र प्रताप को इतिहासकारों ने वह ऊंचाई नहीं दी थी. जिसकी वजह से जाट राजा महेंद्र प्रताप की पहचान नहीं बन पाई.
प्रधानमंत्री मोदी ने अफगानिस्तान की संसद में की थी राजा महेंद्र प्रताप की तारीफ
राजा महेंद्र प्रताप का सही आंकलन इतिहासकारों ने किया होता तो आज राजा को ही नहीं बल्कि, हाथरस जिले को भी दुनिया में जाना जाता. जैसे बाकी महापुरुषों के शहरों का नाम लोग जानते हैं. आखिर कोई तो बात राजा महेंद्र प्रताप में थी, जिसकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तारीफ की. वैसे तो राजा महेंद्र प्रताप को वामपंथी विचारों वाला भी माना जाता है. जो RSS के बड़े विरोधी माने जाते थे. राजा महेंद्र प्रताप के क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित होकर उन्हें मिलने के लिए लेनिन (Lenin) ने भी रूस (Russia) बुलाया था. अफगानिस्तान की संसद में प्रधानमंत्री ने कहा था सीमांत गांधी अब्दुल गफ्फार खान (Abdul Ghaffar Khan) को जानने वाले आज लाखों मिल जाएंगे, लेकिन राजा महेंद्र प्रताप का नाम कितने लोग जानते हैं. मोदी ने सीमांत गांधी के साथ राजा महेन्द्र प्रताप का नाम लिया और उनके और अफगानिस्तान के राजा के बीच की बातचीत को भाईचारे की भावना का प्रतीक बताया.
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अंग्रेजों ने राजा को भगोड़ा घोषित किया
1 दिसंबर 1915 को जब राजा महेंद्र प्रताप 28 साल के हुए थे. उस समय अफगानिस्तान में देश की पहली निर्वाचित सरकार का गठन किया गया था. बाद में सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने 28 साल बाद 21 अक्टूबर 1943 को उन्हीं की तर्ज पर आजाद हिंद सरकार (azad hind government) का गठन सिंगापुर में किया था. राजा महेंद्र प्रताप निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति बनाए गए. यानी राज्य प्रमुख और मौलवी बरकतउल्ला को राजा का प्रधानमंत्री घोषित किया गया. वहीं, अब्दुल्ला सिंधी को गृहमंत्री बनाया गया. राजा ने काबुल से ही बाकायदा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जेहाद का नारा दिया था. राजा महेन्द्र प्रताप ने कई देशों में अपनी सरकार के राजदूत भी नियुक्त किए थे और दूसरे देशों की सरकारों से बात की थी. भारत के राजदूत को मान्यता देने की बातचीत में भी राजा जुट गए थे, लेकिन उस समय कोई बेहतर रणनीति नहीं थी और न ही उन्हें क्रांतिकारी पहल के लिए सुभाष चंद्र बोस जैसा समर्थन मिला. लेकिन अफगानिस्तान में उन्होंने प्रतीकात्मक रूप में सरकार बनाई थी. ब्रिटिश सरकार ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह पर इनाम भी रखा था. उनकी रियासत को कब्जे में ले लिया था और राजा महेंद्र प्रताप को भगोड़ा घोषित कर दिया था. राजा महेंद्र प्रताप ने काफी परेशानी के दिन झेले. उन्होंने जापान में एक मैगजीन की शुरुआत की. जिसका नाम था वर्ल्ड फेडरेशन, इस मैगजीन के जरिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार की क्रूरता को दुनिया भर के सामने लाया.
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महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में लिखी तारीफ
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और राजा महेंद्र प्रताप में भी अजीबो-गरीब रिश्ता था. 32 साल बाद जब राजा महेंद्र प्रताप 1946 में मद्रास के समुद्र तट पर उतरे. वह सीधे घर नहीं गए. महात्मा गांधी से मिलने के लिए वर्धा आश्रम पहुंचे थे. बहुत कम लोग जानते हैं कि राजा महेंद्र प्रताप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था. राजा महेंद्र प्रताप के बारे में नोबेल कमेटी ने कुछ लाइनें भी लिखी थी. जिसमें राजा महेन्द्र प्रताप द्वारा शिक्षा के लिए अपनी जमीन दान में देना और वृंदावन में टेक्निकल कॉलेज की स्थापना करना महत्वपूर्ण था. इसके साथ ही राजा महेन्द्र प्रताप ने गांधी जी के साउथ अफ्रीका के आंदोलन में हिस्सा लेने भी पहुंचे थे. इतना ही नहीं वे तिब्बत मिशन पर दलाई लामा से भी मिले थे. राजा महेंद्र प्रताप को कमजोर लोगों का हिमायती कहा जाता था. हांलाकि, किसी कारणवश राजा महेन्द्र प्रताप को नोबेल पुरस्कार (Nobel Price) नहीं दिया जा सका. लेकिन नोबेल पुरस्कार कमेटी के लिखित बयान से काफी कुछ पता चलता है. इतना ही नहीं महात्मा गांधी ने भी एक बार राजा महेन्द्र प्रताप की अपने अखबार यंग इंडिया (Young India) में जमकर तारीफ की थी. जिससे राजा महेंद्र प्रताप से गांधी जी के गहरे नाते की मिसाल देखने को मिलती है. हालांकि राजा महेंद्र प्रताप कभी कांग्रेस में शामिल नहीं हुए. लेकिन, उनकी हस्ती इस कदर बड़ी थी कि कांग्रेस के साथ ही उस वक्त के जनसंघ के बड़े नेता और भावी पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को लोकसभा चुनाव में धूल चटा दी थी. 1952 में वे मथुरा से निर्दलीय सांसद बने. फिर 1957 में अटल बिहारी वाजपेई को हराकर निर्दलीय सांसद चुने गए.