अलीगढ़:सरकारें वायदे करती हैं. शहीद सैनिकों के सम्मान में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएंगी. उनके परिवार को कोई पीड़ा नहीं होने दी जाएगी, लेकिन सन 2010 में छत्तीसगढ़ के ताड़ मेटला (दंतेवाड़ा) में नक्सली हिंसा में शहीद सैनिक को सम्मान देना भूल गई. ताड़ मेटला के नक्सली हिंसा में 76 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे. जिसमें जमरुल हसन ने भी शहादत दी थी. आज उनका परिवार अलीगढ़ के जमालपुर इलाके में रह रहा है. जमरुल अपने पीछे पत्नी, तीन बेटियां और एक पुत्र को छोड़ गए. इनके परिवार की देख रेख का जिम्मा सरकार का था, लेकिन सरकार ने इनकी तकलीफों को देखना बंद कर दिया है. शहीद जमरुल के परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी नसीब नहीं हुई. पत्नी शबीना का इलाज आर्मी के अस्पताल में मयस्सर नहीं है. दस साल से ज्यादा समय हो गया, लेकिन सरकार ने कोई वायदा पूरा नहीं किया. सिर्फ पेंशन से ही परिवार को गुजर बसर हो रहा है.
दंतेवाड़ा नक्सली हमले में हुए शहीद
CRPF के शहीद जवान जमरुल हसन का परिवार संभल में रहता था, लेकिन उनकी मौत के बाद परिवार के लोग अलीगढ़ आ गए. 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में जमरुल हसन मारे गए. जमरुल हसन के बेटे आमिर कहते हैं कि सरकार ने वायदे बहुत किए थे, लेकिन पूरे नहीं किए गए. घटना के 10 साल से ज्यादा समय हो गया, लेकिन शहीद के परिवार को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थी. वह पूरी नहीं हुई. परिवार के सदस्य को नौकरी नहीं मिली है तो वहीं मां को मिलने वाले पेंशन से ही परिवार का गुजर-बसर चल रहा है.
इसे भी पढ़ें- 22 अप्रैल को आजमगढ़ गैंगस्टर कोर्ट में होगी मुख्तार अंसारी की पेशी