अलीगढ़:आलू के बगैर सब्जी का स्वाद अधूरा ही रहता है. बच्चे हों या बड़े आलू से बने व्यंजन लोगों को खूब भाते हैं. हिंदुस्तान में आलू बादशाह जहांगीर के समय में पुर्तगाली लेकर आए थे. तब महाराणा प्रताप के वंशजों ने फुलवा आलू लगाया था. जहांगीर की पहल पर महाराणा अमर सिंह से हुई चित्तौड़ संधि में इसी आलू से बने व्यंजन परोसे गये थे. अलीगढ़ के लोधा क्षेत्र में प्रताप सीड्स ऑर्गेनिक रिसर्च फाउंडेशन चलाने वाले ललित और आकांक्षा पांच सौ साल पुराने फुलवा आलू की प्रजाति के बीजों को संरक्षित कर रहे हैं. ये देसी आलू है. इसमें शुगर अन्य आलू की अपेक्षा कम होता है. यह बहुत ही स्वादिष्ट होता है. इसके बने पापड़ की अमेरिका में बहुत डिमांड है. वहीं इससे दम आलू की सब्जी भी स्वादिष्ट बनती है. इस आलू की प्रजाति विलुप्त हो रही है. ललित और आकांक्षा ने फुलवा आलू के बीजों को संरक्षित किया हुआ है. ललित बताते हैं कि यह हमारे पूर्वजों की धरोहर है. इसलिए हम इसे जरूर लगाते हैं. फुलवा प्रजाति का आलू दुनिया का एकमात्र नान हाइब्रिड किस्म का आलू है.
भारतीयों को आलू का स्वाद चखाने का श्रेय यूरोपीय व्यापारियों को जाता है. जो आलू लेकर यहां आये और इसका प्रचार किया. आलू का जन्म वैसे तो दक्षिण अमेरिका की पेरू देश के करीब एंडीज पर्वत श्रृंखला में स्थित टिटिकाका झील के पास हुआ था. आलू की कई प्रजातियां है. भारत में सबसे पुरानी प्रजाति का फुलवा आलू है. जो करीब पांच सौ साल पुराना है. अलीगढ़ के ललित सेंट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट के मानकों के आधार पर बीज तैयार होते हैं. ये लोग कृषि प्रदर्शनी में इस आलू को प्रदर्शित कर चुके है.
स्वाद में बेजोड़ है ये आलू
स्वाद के मामले में फुलवा आलू बेजोड़ है. होली पर इस आलू का इस्तेमाल पापड़ बनाने में किया जाता है. तो वहीं दम आलू की सब्जी में फुलवा आलू का प्रयोग करने पर जायका बढ़ जाता है. सामान्य आलू से ये दोगुनी कीमत का होता है. लेकिन स्वाद के शौकीन इसे जरूर खरीदते हैं. हालांकि कम उत्पादन और ज्यादा दिन में फसल होने के कारण कुछ ही किसान इसकी पैदावार करते हैं. फुलवा आलू की प्रजाति डेढ़ सौ दिनों में तैयार होती है. बड़े किसान ही इसके बीज का प्रयोग कर बाजार में आलू उपलब्ध कराते हैं. आम आलू जहां 15 रुपये किलो है. तो वहीं फुलवा आलू की कीमत 25 रुपये किलो होती है.