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कारगिल विजय दिवस: छुट्टी मनाने आए थे शहीद रामसमुझ, कारगिल युद्ध का बज गया बिगुल - आजमगढ़ खबर

साल 1999 में पाकिस्तान के विरुद्ध भारतीय सेना द्वारा चलाए गए इस ऑपरेशन विजय में 527 सेना के अधिकारी व जवान शहीद हुए थे और इन्ही में आजमगढ़ की मिट्टी का एक लाल भी था.

करगिल युद्ध में शहीद हुआ था आजमगढ़ के लाल.

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Published : Jul 26, 2019, 10:37 AM IST

आजमगढ़:वर्ष 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़ी युद्ध करगिल में आजमगढ़ की मिट्टी का भी एक लाल शहीद हुआ था. उनकी याद में हर 30 अगस्त को एक शहीद मेले का आयोजन किया जाता है. जिसे पूरा जनपद एक पर्व के रूप में मनाता हैं. इस मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर शहीद के परिवारों को सम्मानित भी किया जाता है.

22 वर्ष की उम्र में हो गए शहीद:
जनपद के सगड़ी तहसील के नाथूपुर गांव में 30 अगस्त 1977 को किसान परिवार में जन्मे राम समुझ अपने तीन भाई बहनों में सबसे बड़े थे और बचपन में ही सेना में जाने का सपना देख रहे थे. शहीद रामसमुझ यादव विपरीत परिस्थितियों से लड़ते हुए 1997 में सेना की कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए थे. रामसमुझ की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद पहली तैनाती सियाचिन ग्लेशियर पर हुई.

3 महीने के बाद सियाचिन ग्लेशियर से नीचे आने आए और परिवार के कहने पर रामसमुझ ने छुट्टी के लिए आवेदन किया और छुट्टी मंजूर भी हो गई. इसी बीच करगिल का युद्ध छिड़ गया और रामसमुझ की छुट्टी रद्द कर करगिल भेज दिया गया. युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए 30 अगस्त 1999 को रामसमुझ 22 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए.

करगिल युद्ध में शहीद हुआ था आजमगढ़ के लाल.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए शहीद रामसमुझ के पिता राजनाथ यादव ने बताया कि मेरे घर की स्थिति बहुत कमजोर थी. मेरा सबसे बड़ा लड़का बीएससी कर रहा था. उसी दौरान रामसमुझ ने सेना में भर्ती होने की इच्छा जाहिर की और मेहनत शुरु कर दी. अपने जज्बे और मेहनत से वह दूसरे ही प्रयास में सेना में भर्ती भी हो गया.

वादों से मुकर गई सरकार-
पिता का कहना है कि जिस तरह से सरकार ने ऑपरेशन विजय में शहीद होने वाले शहीदों के परिजनों के नाम से हॉस्पिटल स्कूल खोले जाने का वायदा किया था. वह तो पूरा नहीं हुआ लेकिन एक गैस एजेंसी जरूर मिली है. जिसके सहारे घर का खर्चा चलता है.

मजदूर कर घर का खर्च चलाते थे भैया-
शहीद रामसमुझ के छोटे भाई प्रमोद यादव ने बताया कि हमारे बड़े भाई ने बहुत संघर्ष किया. भैया जिस स्कूल में पढ़ते थे और उसी स्कूल में मजदूरी कर अपनी फीस और घर का खर्चा भी चलाते थे.

30 अगस्त को लगता है शहीद मेला-
छोटे भाई का कहना है कि मैं भी बड़े भैया के दिखाए रास्ते पर हम चल रहा हूं और आज जो कुछ भी हम लोग हैं उन्हीं की बदौलत हैं. उनकी याद में हर 30 अगस्त को एक शहीद मेले का आयोजन किया जाता है. जिसे हम एक पर्व के रूप में मनाते हैं. इस मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर शहीद परिवार के लोगों को सम्मानित भी किया जाता है.

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